SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम वर्ग। १८५ १२. प्राण के दस प्रकार हैं१. श्रोत्रेन्द्रिय प्राण ६. मनोबल प्राण २. चक्षुरिन्द्रिय प्राण ७. वचनबल प्राण ३. घ्राणेन्द्रिय प्राण ८. कायबल प्राण ४. रसनेन्द्रिय प्राण ९. श्वासोच्छ्वास प्राण ५. स्पर्शनेन्द्रिय प्राण १०. आयुष्य प्राण १३. योग के तीन प्रकार हैं १. मनोयोग २. वचनयोग ३. काययोग मनोयोग के चार प्रकार हैं१. सत्य मनोयोग ३. मिश्र मनोयोग २. असत्य मनोयोग ४. व्यवहार मनोयोग वचनयोग के चार प्रकार हैं१. सत्य वचनयोग ३. मिश्र वचनयोग २. असत्य वचनयोग ४. व्यवहार वचनयोग काययोग के सात प्रकार हैं१. औदारिक काययोग ५. आहारक काययोग २. औदारिक मिश्र काययोग ६. आहारकमिश्र काययोग ३. वैक्रिय काययोग ७. कार्मण काययोग ४. वैक्रियमिश्र काययोग १४. उपयोग के दो प्रकार हैं १. साकार उपयोग २. अनाकार उपयोग साकार उपयोग के आठ प्रकार हैं पांच ज्ञान१. मतिज्ञान ४. मनःपर्यवज्ञान २. श्रुतज्ञान ५. केवलज्ञान ३. अवधिज्ञान तीन अज्ञान१. मति अज्ञान २. श्रुत अज्ञान ३. विभंग अज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003129
Book TitleJain Tattvavidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2008
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, M000, & M015
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy