SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ग ४, बोल १८ / १६३ उपवास एक दिन के लिए पानी के अतिरिक्त सब प्रकार के खाद्य-पेय पदार्थों का परिहार करना। यह तिविहार उपवास का क्रम है। चउविहार उपवास में पानी भी नहीं पिया जाता । आगम साहित्य में उपवास के लिए 'चउत्थभत्त' शब्द अधिक काम में आता है। दिवसचरिम एक घण्टा दिन रहते-रहते भोजन-पानी से निवृत्त होना, दूसरे दिन सूर्योदय तक कुछ भी नहीं खाना। अभिग्रह विशेष प्रतिज्ञा की संपूर्ति होने से पहले भोजन नहीं करना । दस प्रत्याख्यान का यह क्रम व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों प्रकार से चलता है १८. व्यवहार के पांच प्रकार हैं१. आगम ४. धारणा २. श्रुत ५. जीत ३. आज्ञा भगवान महावीर तथा उत्तरवर्ती आचार्यों ने संघ-व्यवस्था को सम्यग् प्रकार से संचालित करने के लिए नई दृष्टि दी । मुनि के सामने करणीय और अकरणीय का प्रश्न उपस्थित होने पर उस दृष्टि के अनुसार काम करने का निर्देश दिया गया है। आगमों में उस दृष्टि के लिए 'व्यवहार' शब्द का प्रयोग हुआ है। जिनके द्वारा व्यवहार का संचालन होता है, वे व्यक्ति भी व्यवहार कहलाते हैं। आगम-व्यवहार व्यवहार के संचालन में पहला स्थान है आगम-पुरुष का । आगम-पुरुष का अर्थ है विशिष्टज्ञानी पुरुष । केवलज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, चुतर्दशपूर्वधर, और दशपूर्वधर—ये पांच प्रकार के ज्ञानी आगम-पुरुष कहलाते हैं। साधना या व्यवस्था के प्रसंग में संदेह या उलझन उपस्थित होने पर आगम-पुरुष के निर्देशानुसार व्यवहार करने का नाम आगम-व्यवहार है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003129
Book TitleJain Tattvavidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2008
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, M000, & M015
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy