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________________ मैं लगभग प्रतिदिन प्रवचन करता हूं। एक बार प्रवचन करना तो मेरी जीवनचर्या का एक अनिवार्य अंग-सा ही बन गया है । कभी-कभी दिन में तीन-तीन, चार-चार बार भी प्रवचन करना आवश्यक होता है । प्रवचन से विश्राम कहां। और बहुत सही तो यह है कि विश्राम लेना ही किसे है। विश्राम तो उसे लेना पड़ता है, जो थकान अनुभव करता है। मुझे इसमें थकान अनुभव ही नहीं होती। यह तो मेरा काम है। अपना काम करते थकान कैसी । उसमें तो उल्टा आनन्द होता है। तब भला उस आनन्द को कौन छोड़ना चाहेगा। मैं प्रवचन करता हूं। पर ऐसा कर किसी पर अहसान तो नहीं करता। यह तो मेरी स्वयं की साधना है। आत्माराधना करते जो अनुभव मुझे मिले, उन्हें जनता के सामने बिखेर देना - यही तो प्रवचन है। इस अपेक्षा से प्रवचन करने का सच्चा अधिकारी वही है, जिसने अपने जीवन को आत्माराधना में लगाया है। जो व्यक्ति साधना करता ही नहीं, उसे प्रवचन का कैसा अधिकार। साधक अपने अनुभव इसलिए सुनाता है कि कोई उनसे प्रेरणा पाए तो अच्छा। यदि कोई प्रेरणा नहीं भी पाता है तो भी उसने तो अपनी साधना का लाभ कमा ही लिया । स्वाध्याय के रूप में उसके तो निर्जरा हो ही गई। ersonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003128
Book TitleManavta Muskaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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