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९. जैन दर्शन और विज्ञान में परमाणु
(१) जैन परमाणुवाद जैन दर्शन में प्रतिपादित परमाणुवाद प्राचीनता और मौलिकता दोनों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। जैन परमाणुवाद का सम्बन्ध भगवान पार्श्व (ई० पू० ८५०) से माना जाय तो इससे अधिक प्राचीन परमाणुवाद का कोई रूप उपलब्ध नहीं होता। भगवान् महावीर (ई०पू० ५९९) से माना जाय तो भी वैशेषिक दर्शन के प्रणेता कणाद और ग्रीक दार्शनिक डेमोक्रिट्स से जैन परमाणुवाद प्राचीनतर सिद्ध होता है। इतना ही नहीं, जिस विस्तार के साथ परमाणु के स्वरूप, गुणधर्म आदि पर जैन दर्शन में प्रकाश डाला गया है, उतना कणादीय या डेमोक्रिट्स के परमाणुवाद में उपलब्ध नहीं होता। कुछ विषय तो ऐसे हैं जहां तक आधुनिक विज्ञान भी अभी नहीं पहुंच सका है। हम यहां जैन परमाणुवाद के मुख्य सिद्धांतों की चर्चा करेंगे तथा यथासंभव आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों के आलोक में उनकी समीक्षा भी करेंगे। चार प्रकार के परमाणु
भगवती सूत्र में परमाणु चार प्रकार का कहा गया है
१. द्रव्य परमाणु-पुद्गल द्रव्य का अविभाज्य अंश। इसे हम भौतिक विश्व की प्राथमिक इकाई (Primary unit of the physical world) के रूप में कह सकते हैं। हमारे प्रस्तुत विषय का संबंध इसी द्रव्य परमाणु से है।
२. क्षेत्र परमाणु--आकाश का अविभाज्य अंश या प्रदेश। इसे आकाश-द्रव्य की प्राथमिक इकाई (Primary unitof space or space-point) कहा जा सकता
३. काल परमाणु-काल का अविभाज्य अंश या 'समय' । यह काल की प्राथमिक इकाई (Primary unitof time) है।
४. भाव परमाणु-स्पर्श आदि गुणों की अविभाज्य मात्रा या क्वांटम (अविभाज्य राशि) यह भी पौद्गलिक गुणों की प्राथमिक इकाई है। गुणों के तारतम्य की अनन्तता के कारण ये अनन्त होते हैं।
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