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________________ ३१६ जैन दर्शन और विज्ञान इसी प्रकार आगे के विकल्प बनाए जा सकते हैं। परमाणु-मिलन (fusion) के नियम जैन दर्शन ने परमाणुओं के संघात' (मिलन) के लिए उनके स्निग्ध-रूक्ष स्पर्श को कारण माना है, स्निग्ध-रूक्ष स्पर्शे की तुलना आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रतिपादित धन विद्युत् (positive electricity) और ऋण-विद्युत् (negative electricity) आवेश के साथ की जा सकती है, क्योंकि जैन दर्शन के अनुसार विद्युत् या बिजली (lightening) की उत्पत्ति में स्निग्ध-रूक्ष गुण ही निमित्त बनते हैं। इसके लिए सूत्र है-“स्निग्धरूक्षगुणनिमित्तो विद्युत्"। प्रत्येक पुद्गल-परमाणु और पुद्गल-स्कंध में स्निग्ध या रूक्ष स्पर्श अवश्य ही होता है। इन स्पर्श की मात्रा जिसे 'गुण' (Unit) कहा जाता है के आधार पर यह निर्धारित होता है कि दो पुद्गलों का संघात हो सकता है या नहीं। इनकी न्यूनतम मात्रा एक गुण होती है, जिससे कम मात्रा नहीं होती। यह एक प्रकार से 'क्वांटम' यानी एक 'पूर्ण राशि' या' पेकेट' है जो अपूर्णांक या भिन्न (fraction) द्वारा अभिव्यक्त नहीं हो सकता। इसका तात्पर्य हुआ कि कोई परमाणु एक गुण स्निग्ध या एक गुण रूक्ष हो सकता है, पर आधा ( ) या पाव (1) नहीं। इसी तरह दो, तीन 'गुण' वाला हो सकता है पर १-१/२, २-१/२ आदि नहीं। आधुनिक विज्ञान के अनुसार 'क्वांटम सिद्धांत' द्वारा भी यही प्रतिपादित हुआ है। ऊर्जा का एक न्यूनतम अंश 'क्वांटम' कहलाता है। विज्ञान के अनुसार 1h.2h आदि के रूप में यह ऊर्जा हो सकती है, जहां h को Planck'sConstant कहा जाता है। जैन दर्शन के अनुसार पुद्गलों के संयोग के नियम इस प्रकार हैं१. एक गुण स्निग्ध या रूक्ष परमाणु का संयोग नहीं होता। २. विरोधी स्पर्श वाले परमाणु/स्कंध जिनमें दो या दो गुण से अधिक स्निग्धत्व या रूक्षत्व होता है संयुक्त हो सकते हैं। उदाहरणार्थ-२ गुण स्निग्ध+२ गुण रूक्ष पुद्गल मिल सकते हैं। ३. समान स्पर्श वाले परमाणु/स्कंध जिनमें दो गुण या दो गुण से अधिक स्निग्धत्व (या रूक्षत्व) हो तथा इनके गुणों में दो का अन्तर हो, तो ये परमाणु/ स्कंध परस्पर संयुक्त हो सकते हैं। १. 'h' का मूल्य है-६.६२५१७४१०४ जूल-सैकिण्ड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003127
Book TitleJain Darshan aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni, Jethalal S Zaveri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size15 MB
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