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________________ ६८ अप्पाणं सरणं गच्छामि इसे बहुत बड़ा मानकर निर्णय लेता है। यही सबसे बड़ी भूल है। जो व्यक्ति ज्ञात जगत् को छोटा मानकर अज्ञात जगत् की संभावनाओं की ओर प्रस्थान कर देता है, वह सचमुच ज्ञानी होता है। जिसने ज्ञात जगत् को सब कुछ मानकर अज्ञात जगत् के द्वार बन्द कर दिए, वह सबसे बड़ा अज्ञानी होता है। अज्ञान को जानता है ज्ञानी यूनान में डेल्फी देवी का एक मन्दिर है। वह देवी घोषणाएं करती है। लोग प्रश्न पूछते हैं। वह उत्तर देती है। एक बार लोगों ने पूछा-'यूनान में सबसे बड़ा ज्ञानी कौन है?' देवी ने कहा-'सुकरात सबसे बड़ा ज्ञानी है। लोग सुकरात के पास गए और बोले-'देवी ने कहा है कि आप यूनान के सबसे बड़े ज्ञानी हैं।' सुकरात बोले-'कहीं भूल हो गयी है। वापस जाओ। देवी से पूछो।' लोग दौड़े-दौड़े गए। देवी से पूछा-'बड़ा ज्ञानी कौन है?' देवी ने कहा-'मैंने पहले ही कह दिया है, सुकरात सबसे बड़ा ज्ञानी है। लोग पुनः सुकरात के पास आए। सुकरात बोले-'कुछ वर्ष पहले आते तो मैं तुम्हारी बात मान लेता कि मैं सबसे बड़ा ज्ञानी हूं। किन्तु अब मुझे अपने अज्ञान का पता लग गया है, इसलिए मैं तुम्हारी बात स्वीकार नहीं कर सकता।' लोग असमंजस में पड़ गए। वे पुनः देवी के पास आए और बोले-‘या तो आप झूठ कह रही हैं या सुकरात झूठ बोल रहे हैं। दोनों में से कोई एक झूठा है।' देवी ने कहा-'नहीं, मैं सच कह रही हूं क्योंकि जिस व्यक्ति को यह ज्ञात हो जाता है कि वह अज्ञानी है, वही वास्तव में बड़ा ज्ञानी होता है। सुकरात को अपने अज्ञान का पता है, इसलिए वही बड़ा ज्ञानी है। यह एक महत्त्वपूर्ण बात है। हम यदि अपने अज्ञान को समझ लेते हैं तो ज्ञानी बन जाते हैं। व्यक्ति का अहंकार इतना बड़ा होता है कि वह अपने अज्ञान को प्रकट करना नहीं चाहता, उसे छिपाए रखना चाहता है। दशवकालिक आगम में एक सुन्दर गाथा है तवतेणे वयतेणे, रूवतेणे य जे नरे। आयारभावतेणे य, कव्वइ देवकिविसं।। एक व्यक्ति साधुओं के स्थान पर गया। उसने देखा-एक दुबला-पतला साधु स्वाध्याय कर रहा है। उसने पूछा-'सुना है, आपके धर्म-संघ में एक महान् तपस्वी मुनि है। क्या वे आप ही हैं?' साधु का अहं जाग उठा। उसने कहा-'साधु तपस्वी ही होते हैं। वास्तव में वह साधु था बीमार, इसीलिए दुबला-पतला था। किन्तु वह यह कहना नहीं चाहता था कि वह बीमार है। आगन्तुक व्यक्ति ने उस साधु की तपस्वी के रूप में प्रशंसा की। प्रशंसा सुन साधु फूल उठा। यह तपस्या की चोरी है। वह साधु तपःचोर है। इसी प्रकार अवस्था, रूप और आचार-शील की भी चोरी होती है। यह सारा अहंकार के कारण होता है। आदमी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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