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________________ आशीर्वचन शान्ति और समाधि की खोज हर मनुष्य की मंजिल है । समाधि की खोज में बढ़ते हुए आश्वस्त चरण मंजिल की दूरी को कम करते जाते हैं 1 मंजिल तक पहुंचने के लिए परम सत्य का साक्षात्कार आवश्यक है । अन्तश्चेतना में परम सत्य की सम्पूर्ण सत्ता का आकलन करने के लिए भगवद्गीता के कृष्ण ने कहा- मामेकं शरणं व्रज- मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुझे सत्य से मिला दूंगा । त्रिपिटकों के बुद्ध ने अभीप्सित को पाने के लिए त्रिशरण का सूत्र देते हुए कहा बुद्धं शरणं गच्छामि संघं शरणं गच्छामि धम्मं शरणं गच्छामि आगमों के उत्स महावीर ने चारों ओर से त्राण की सम्भावना व्यक्त करते हुए कहा अरहंते सरणं पवज्जामि सिद्धे सरणं पवज्जामि साहू सरणं पवज्जामि केवल पन्नत्तं धम्मं सरणं पवज्जामि । साधारण व्यक्ति स्वयं अपने जीवन - रथ का सारथ्य नहीं कर सकता, इसलिए उसके लिए किसी शक्तिशाली सत्ता की शरण स्वीकार करना आवश्यक हो गया । हमारे युवाचार्य महाप्रज्ञ इन सब शरणों से ऊपर उठकर कहते हैं- अप्पाणं सरणं गच्छामि - मैं अपनी आत्मा की शरण स्वीकार करता हूं। यह अद्वैत की भाषा है। इसमें व्यक्ति स्वयं ही स्वयं का त्राता बनता है । यहां शरण देने वाला परिसर में नहीं, व्यक्ति के अभ्यन्तर में है । यहां किसी परमसत्ता और आत्मसत्ता के बीच का द्वैत समाप्त हो जाता है । वास्तव में गीता, त्रिपिटक और आगमों के शरण आत्मा से भिन्न नहीं हैं, इसलिए शान्ति और समाधि की राह अपनी शरण में जाने से ही खुल सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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