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________________ प्रेक्षा एक पद्धति है शारीरिक स्वास्थ्य की ४५ मन स्थिर नहीं हो सकता । सबसे पहले हमें चंचलता को छोड़ना है। ग्रंथ यह बता रहे हैं कि सबसे पहले हमें मन को स्थिर करना है। मैं समझता हूं यह एक भ्रांति हैं। मन कभी स्थिर होता ही नहीं। मन की प्रकृति है चंचलता। उसका यह स्वभाव है। वह अपने स्वभाव को कैसे छोड़ेगा? वह स्थिर क्यों होगा? आरोपित गुणों को हटाया जा सकता है, किंतु स्वभाव को कभी नहीं बदला जा सकता। विभाव को नष्ट किया जा सकता है, किन्तु बीमारी को स्वास्थ्य में नहीं बदला जा सकता। मन को स्थिर नहीं किया जा सकता। मन का अर्थ है-संकल्प-विकल्प। मन का अर्थ है-स्मृति और चिंतन। मन का अर्थ है-कल्पना। मन तीनों कालों में बंटा हुआ है। जो अतीत की स्मृति करता है, उसका नाम हैं मन। जो भविष्य की कल्पना करता है, उसका नाम है मन। जो वर्तमान का चिंतन करता है, उसका नाम है मन। तीनों चंचलताएं हैं। स्मृति एक चंचलता है। कल्पना एक चंचलता है। चिंतन एक चंचलता है। जब स्मृति, कल्पना और चिंतन नहीं होते तब मन नहीं होता। जब मन होता है तब तीनों आवश्यक हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में मन को स्थिर करने की बात कैसे प्राप्त हो सकती है? मन को स्थिर करने की बात केवल एक भ्रांति है। इसे हम निकाल दें। मन को स्थिर नहीं, समाप्त करना मन को स्थिर करने का अर्थ है-मन के अस्तित्व को समाप्त कर देना। हम इस भाषा का प्रयोग करें कि मन को स्थिर नहीं किया जा सकता, उसको समाप्त किया जा सकता है। मन को अमन बनाया जा सकता है। मन का स्थायी अस्तित्व नहीं है। उसका अस्तित्व अस्थायी है। यदि कोई सोचे कि वह दीपक की लौ की गति को रोक दे, तो क्या यह संभव है? गति को रोकने का अर्थ है-लौ की समाप्ति। दीपक बुझ जाएगा। हम दीपक को बुझा सकते हैं, लौ की गति को नहीं रोक सकते। नदी के प्रवाह को रोका जा सकता है। रुकने के बाद प्रवाह प्रवाह नहीं रहता, वह केवल बांध का पानी बन जाता है। प्रवाह भी रहे और गति भी न हो, दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं। मन भी रहे और स्मृति, कल्पना तथा चिंतन न हो-ये दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं। मन होगा तो ये तीनों बातें होंगी। ये होंगी तो मन अवश्य होगा। मन को उत्पन्न न करें, यह संभव है। मन को मिटा दें, यह भी संभव है, किन्तु मन को स्थिर कर दें, यह संभव नहीं है। अमन की स्थिति हम ऐसा अभ्यास करें जिससे मन की भूमिका से हटकर चित्त की भूमिका पर चले जाएं। हम मन को उत्पन्न न करें और अधिक से अधिक अमन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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