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३३० अप्पाणं सरणं गच्छामि
प्रारंभ की। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि शरीर पुष्ट होना, रक्त का लाल होना, शरीर में चमक-दमक होना-इन सब से ब्रह्मचर्य का कोई संबंध नहीं है। जो व्यक्ति इन सबका संबंध ब्रह्मचर्य के साथ जोड़ता है, वह बहुत बड़ी भ्रान्तियां पैदा करता है। मेरा यह कथन सुनने में अटपटा-सा लगता हो, पर है यह एक सचाई। मैं महावीर को उद्धृत करूं, बुद्ध और कबीर को उद्धृत करूं, आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी को उद्धृत करूं-इन सब महात्माओं ने साधक का लक्षण जो बतलाया है, वह विचित्र है। महावीर ने ब्रह्मचारी के लिए एक विशेषण प्रयुक्त किया है- 'भासच्छन्नेव जायतेजसे-ब्रह्मचारी राख से ढंकी अग्नि की भांति होता है। कबीर ने कहा- 'बाहर से तु कछुअ न दीखे, भीतर जल रही ज्योत। ऐसा होता है साधक। बाहर से कुछ नहीं दीखता, भीतर में ज्योति प्रज्वलित रहती है। आचार्य भिक्षु ने कहा- 'दुर्बल शरीर हुवै तपसी तणों।' शरीर दुबला होता है, पर भीतर ज्योति जलती है। ब्रह्मचारी वह होता है जिसके भीतर प्राण की ज्वाला प्रज्वलित होती है और ऊपर से वह रूखा-सूखा-सा लगता है। ठीक इससे उल्टा होता है भोगी आदमी। वह बाहर से चमक-दमक वाला होता है और भीतर से सर्वथा शून्य । उसकी प्राण-ज्वाला बुझ जाती है। सारी प्राण-विद्युत् चुक जाती है। प्राण-ऊर्जा का प्रभाव
जीवन का मूल आधार है-प्राण-शक्ति, वाइटेलिटी। जीवन का आधार रक्त और मांस नहीं है। लोगों ने यह मान रखा है कि शरीर में रक्त अच्छा रहेगा तो चमक रहेगी, अन्यथा नहीं। किन्तु इसका शक्ति के साथ सीधा संबंध नहीं है। वर्तमान शताब्दी में एक महान् शक्तिशाली व्यक्ति हुआ। उसका नाम था महात्मा गांधी । वे राजनीति और अध्यात्म के संधि-क्षेत्र में हुए। एक विचारक ने महात्मा गांधी को देखकर लिखा- 'मैंने दुनिया में इतने भद्दे आदमी में इतना सौन्दर्य नहीं देखा।' यह बात बहुत अच्छी लगी। महात्मा गांधी का वजन केवल सौ पाउंड था। शरीर हड्डियों का ढांचा मात्र था। किन्तु उनका सौन्दर्य इतना प्रभावक था कि विश्व के बड़े-बड़े व्यक्ति उनके पीछे फिरते थे। उनके साथ पांच-दस मिनट बैठकर, उनसे बातचीत कर अपने आपको धन्य मानते थे। इस विशाल सौन्दर्य का कारण क्या था? उसका एकमात्र कारण था-संयम। महात्मा गांधी ने इतना कठोर संयम साधा, संयममय जीवन व्यतीत किया कि प्रत्येक व्यक्ति उनके साथ रहने को ललचाता था और उनसे बात कर अपने आपको गौरवान्वित मानता था।
जिस व्यक्ति में प्राण की ऊर्जा होती है संयम और त्याग का तेज होता है, वह व्यक्ति बाहर से कुछ भी न होने पर भी भीतर में अत्यन्त प्राणवान् और तेजस्वी होता है। वह जीवन्त और शक्तिशाली होता है। अब्रह्मचर्य या असंयम
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