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________________ ३२८ अप्पाणं सरणं गच्छामि शिवत्व को जगाने का अभ्यास किया है। जिसका शिवत्व जाग गया, वह हर आत्मा शिव बन गया। प्रत्येक साधक शिव होता है और वह दर्शन-केन्द्र या ततीय नेत्र को सक्रिय बनाकर होता है। वह अपनी पिच्यूटरी ग्लैण्ड को सक्रिय कर एड्रीनल को प्रभावित करता है, उसके स्राव को नियन्त्रित करता है। दूसरे शब्दों में, वह स्राव को बदल देता है और काम से अकाम बन जाता है। उसका काम उस तीसरे नेत्र से भस्म हो जाता है, समाप्त हो जाता है। काम-विजय की भी एक प्रक्रिया है। जो इस प्रक्रिया को जाने बिना काम-विजय का प्रयत्न करता है वह कभी सफल नहीं होता। परिणाम विपरीत होता है और वह विक्षिप्त बन जाता है। इस एककोणीय सत्य को हम उसी कोण से देखें, समझें। हम यदि यह मान लें कि कोई ब्रह्मचारी हो ही नहीं सकता या काम की मांग को पूरी किए बिना कोई अपना विकास नहीं कर सकता, पागलपन से मुक्त नहीं हो सकता तो यह बहुत बड़ा भ्रम होगा, असत्य का पोषण होगा। हम इस कोण को न भूलें कि साधना के लिए कामवासना का नियन्त्रण कितना अपेक्षित है। ऊर्जा का उपयोग कहां? ध्यान-साधक के लिए आहार का संयम भी बहुत अपेक्षित है। जो व्यक्ति अपनी सारी शक्ति भोजन के पाचन आदि में खपा देता है, वह ध्यान नहीं कर सकता, ध्यानी नहीं हो सकता। ध्यान का लाभ उसे कभी नहीं मिल सकता। ऊर्जा सीमित है। वह जितनी है उतनी ही है। उसका उपयोग चाहे भोजन पचाने में किया जाए या मस्तिष्कीय विकास में किया जाए। अतिरिक्त भोजन करने वाले व्यक्ति की सारी ऊर्जा आंतों में खप जाती है। यदि इतनी ऊर्जा पर्याप्त नहीं होती तो मस्तिष्क में काम आने वाली ऊर्जा भी वहां खप जाती है। मस्तिष्क शरीर का दो प्रतिशत भाग है। किन्तु उसे विद्युत् चाहिए बीस प्रतिशत । इतनी विधुत् मिलने पर ही वह अच्छा काम कर सकता है, अन्यथा नहीं। किन्तु अति भोजन करने वाला व्यक्ति बीस प्रतिशत विद्युत् को भी भोजन पचाने में खपा देता है। मस्तिष्क को विद्युत् नहीं मिलती। वह बड़ा काम नहीं कर सकता। इतिहास में नहीं मिलता कि किसी पेटू आदमी ने बड़ा काम किया हो। बड़ा काम उन्हीं लोगो ने किया है जो भोजन के प्रति संयत थे। कुछेक व्यक्ति भोजन के प्रति सावधान नहीं होते। वे मानते हैं-शरीर को चलाने के लिए भोजन अपक्षित है। उनका मन कार्य में इतना संलग्न हो जाता है कि वे भूल जाते हैं कि भोजन किया या नहीं। आइंस्टीन प्रयोगशाला में थे। वे किसी गुत्थी को सुलझाने में तल्लीन थे। भोजन का समय हुआ। पत्नी प्रयोगशाला में एक मेज पर भोजन रखकर चली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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