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________________ नयी आदतें : नयी आस्थाएं ३०१ में मानसिक आनन्द आए और दुःख न आए, संताप न आए, ऐसा भी नहीं हो सकता। जहां सुख की अनुभूति होती है वहां संताप भी साथ-साथ आता है। कोई भी ऐसा सुख नहीं है जिसके साथ दुःख जुड़ा हुआ न हो। इस भौतिक जगत् की सीमा में होने वाला आनन्द ऐसा नहीं है जिसके पहले या पीछे या समरेखा में संताप न हो। किन्तु जब मन और चेतना की प्रणालिका साफ रहती है, विष जमा होता है और निकल जाता है, मल साफ हो जाता है तो बुढ़ापा नहीं आता, दुःख घनीभूत नहीं होता, वेदना सघन नहीं होती। आती है, चली जाती है। जब मल ज्यादा जमा हो जाता है और उसे निकलने का मार्ग नहीं मिलता तब संताप इतना सघन बन जाता है कि वह भीतर ही भीतर वृद्धिंगत होता हुआ आदमी को पूरा दुःखी बना डालता है। वह दुःखमय और वेदनामय बन जाता है। पीड़ा उसे घेर लेती है। ऐसा क्यों होता है? इसका उत्तर यही है कि जब व्यक्ति हृदय से और चेतना से अतिरिक्त काम लेने लग जाता है, तब मलावरोध होता है और वही इस पीड़ा को उत्पन्न करता है। संचालक-शक्ति-चेतना हमारा सारा जीवन चलता है-आस्था के द्वारा। यह जीवन संचालन का सूत्र है। आंख देखती है, कान सुनते हैं, हाथ-पैर चलते हैं। ये सब क्रिया करने वाले हैं। इनका सूत्रधार कौन है ? इन्हें संचालित करने वाला मूल कौन है, जिनकी प्रेरणा से ये सारे क्रियाशील रहते हैं? आंख देखती है। यदि आंख स्वयं संचालक हो तो वह एक ही दिशा में देखेगी। किन्तु आंख कभी सामने देखती है, कभी इधर-उधर देखती है। कभी दाएं देखती है और कभी बाएं। कभी एक वस्तु को देखती है और कभी दूसरी वस्तु को। ऐसा क्यों होता है? आंख एक उपकरण है, साधन है। भीतर में रहने वाला संचालक-सूत्र उसे इस प्रकार संचालित कर रहा है। जिस दिशा में वह संचालित होती है, उसी दिशा में देखने लग जाती है। आंख स्वयं संचालक नहीं है। वह संचालित है। सारी इन्द्रियां संचालित हैं। संचालन का सूत्र किसी दूसरे के हाथ में है। सेना का संचालन सेनापति करता है। वह कंट्रोल रूम में बैठा-बैठा ही संचालन कर लेता है। संचालन-सूत्र किसी दूसरे व्यक्ति के हाथ में रहता है और संचालित होने वाले दूसरे होते हैं। हमारी सभी कर्मेन्द्रियां, ज्ञानेन्द्रियां, मन और मस्तिष्क-ये सब दूसरे सूत्र से संचालित हैं। इनको संचालित करने वाली शक्ति है-चेतना। चेतना में जितनी आसक्ति, जितनी मूर्छा, जितना मोह है उतना ही अधिक विष जमा होता जाता है और हमारा सारा स्नायु-तन्त्र अवरुद्ध हो जाता है। प्रश्न है-मूर्छा और आसक्ति का, जो चेतना के साथ जुड़ी हुई होती है। पदार्थों के सम्बन्ध से झटका पदार्थ पदार्थ होता है। वह जड़ है। वह न सुख देता है और न दुःख। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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