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३१. नयी आदतें : नयी आस्थाएं
आदमी दो अवस्थाओं में जीता है। एक अवस्था है जवानी की और दूसरी है बुढ़ापे की। आयुष्य के सौ वर्ष के अनुपात में व्यक्ति की दस अवस्थाएं बतलाई गई हैं, किन्तु वे सारी अवस्थाएं इन दो अवस्थाओं में समाविष्ट हो जाती हैं।
प्रश्न होता है-जवान कौन? बूढ़ा कौन? सामान्य आदमी का यही उत्तर होगा कि जो २५-३० वर्ष की आयु का है, वह जवान है। जिसके सिर के बाल काले हैं, वह जवान है। जो आदमी साठ वर्ष पार कर चुका है, जिसके बाल पक गए हैं, सफेद हो गए हैं, वह बूढ़ा है। यह सामान्य उत्तर होगा। जो व्यक्ति शरीर की शक्ति को जानता है, वह ऐसा उत्तर नहीं देगा। वह कहेगा-जवान वह होता है जिसका रक्तचाप सन्तुलित होता है। बूढ़ा वह होता है जिसका रक्तचाप सन्तुलित नहीं होता। जिसका रक्तचाप सन्तुलित है और वह सत्तर वर्ष का हो गया है, तो भी वह जवान है। जिसका रक्तचाप असन्तुलित है और वह तीस वर्ष का ही है, फिर भी वह बूढ़ा है।
रक्तचाप बढ़ने का कारण है हृदय पर अतिरिक्त भार पड़ना। जब हृदय को अधिक श्रम करना पड़ता है तब रक्तचाप बढ़ जाता है। जब धमनियां ठीक काम नहीं करतीं, धमनियों के छिद्र अवरुद्ध हो जाते हैं तब हृदय को उन तक रक्त पहुंचाने के लिए अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है। वह कमजोर होता चला जाता है और रक्तचाप बढ़ता चला जाता है। इससे तीस वर्ष का आदमी भी बूढ़ा होता चला जाता है। जब धमनियां ठीक होती हैं, प्रणालिकाएं ठीक होती हैं तो रक्त का संचार निर्बाध गति से होता रहता है। इस स्थिति में हृदय को अतिरिक्त श्रम नहीं करना पड़ता। उसकी शक्ति कम क्षीण होती है और वह लम्बे समय तक कार्यक्षम हो सकता है। इस स्थिति में आदमी सत्तर वर्ष की अवस्था में भी जवान बना रह सकता है। रक्त-संचार में बाधा क्यों
पुनः एक प्रश्न होता है कि धमनियों के रास्ते अवरुद्ध क्यों होते हैं? वे कमजोर क्यों होती हैं? रक्त-संचार में बाधा क्यों आती है?
यह शरीर मलों का शरीर है। इसमें इतने मल जमा होते हैं कि यदि वे न निकलें तो सारा शरीर मलमय बन जाता है। मल निकलने के अनेक द्वार हैं-मल-द्वार (गुदा), मूत्र-द्वार (शिश्न), त्वचा और श्वास-प्रणाली। ये सारे द्वार मल को बाहर फेंकते हैं। किन्तु कुछेक कारणों से ये अवयव विसर्जन का काम
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