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________________ २७२ अप्पाणं सरणं गच्छामि चेतना जब लुप्त हो जाती है, तब व्यक्ति के मन में यह विचार उठता है कि चरित्रवान् दुःख पाता है और चरित्रहीन सुख भोगता है। जब यह विचार दृढमूल बन जाता है तब उस व्यक्ति का, समाज या राष्ट्र का चरित्र - पक्ष कभी उज्जवल नहीं रह सकता। वे कभी उन्नति के शिखर का स्पर्श नहीं कर सकते । आनन्दघनजी से संबंधित चारित्रिक पक्ष की एक दूसरी घटना है। एक बार एक प्रदेश के राजा-रानी आनन्दघनजी के पास आए। वे बोले-गुरुवर ! और सब कुछ है, पर पुत्र नहीं है । पुत्र के बिना संपदा और वैभव का प्रयोजन ही क्या हो सकता है? आनन्दघनजी बोले- मैं क्या पुत्र दूंगा? जाओ, और किसी से याचना करो । राजा-रानी ने बहुत आग्रह किया। आनन्दघनजी ने एक पन्ने पर कुछ लिखा और कहा- रानी के बाएं हाथ पर बांध देना । मेरी एक शर्त मानना, सदा सदाचार का पालन करना । अहिंसा, सत्य का पालन करना । मनोकामना पूरी होगी। अन्याय मत करना, शोषण और उत्पीड़न से बचना । न्याय करना । राजा-रानी ने सभी व्रतों का पालन प्रारंभ कर दिया । आचरण का पक्ष उज्ज्वल हुआ। क्षमता बढ़ी । भावनाओं में शक्ति आयी, संकल्प - शक्ति का विकास हुआ। संयोग की बात पुत्र की प्राप्ति हो गई। वे दोनों आनन्दघनजी के पास आकर बोले- महाराज ! आपका मंत्र सफल हुआ। हम आपके अत्यन्त आभारी हैं। आनन्दघनजी ने कहा- रानी के हाथ पर बंधा पत्र लाओ। उसे पढ़ो। उसमें लिखा था - रानी को पुत्र हो तो आनन्दघनजी को क्या ? पुत्र न हो तो आनन्दघनजी को क्या? यह न का केई यंत्र था और न मंत्र । चरित्र और संकल्प जब व्यक्ति का चरित्र शुद्ध होता है तब उसका संकल्प अपने आप फलित होता है । चरित्र की शुद्धि के आधार पर संकल्प की क्षमता जागती है । जिसका संकल्प - बल जाग जाता है उसकी कोई भी कामना अधूरी नहीं रहती । 1 संकल्प लेश्याओं को प्रभावित करते हैं । लेश्या का बहुत बड़ा सूत्र है - चरित्र । तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या - ये तीन उज्ज्वल लेश्याएं हैं । इनके रंग चमकीले होते हैं। कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या - ये तीन अशुद्ध लेश्याएं हैं। इनके रंग अंधकार के रंग होते हैं । वे विकृत भाव पैदा करते हैं। वे रंग हमारे आभामंडल को धूमिल बनाते हैं । चमकते रंग आभामंडल में निर्मलता और उज्ज्वलता लाते हैं । वे आभामंडल की क्षमता बढ़ाते हैं। उनकी जो विद्युत् चुम्बकीय रश्मियां हैं वे बहुत शक्तिशाली बन जाती हैं । हम लेश्या - ध्यान का प्रयोग करते हैं। जब हम दर्शन केन्द्र पर बाल सूर्य के अरुण रंग का ध्यान करते हैं और वह रंग जब प्रकट होता है तब करने वाले को ज्ञात होता है कि उसमें कितना आनन्द जाग रहा है। जिस व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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