SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाधि और प्रज्ञा १८३ जाएं। समाधि की यात्रा में चलते जाएं। चलते-चलते एक निश्चित बिन्दु आएगा, हमारे जीवन में समाधि की घटना घटित हो जाएगी। समाधि के विघ्नों का एक लंबा-चौड़ा विवरण है-प्रमाद, आलस्य, नींद। ये बातें तो हैं ही, ये सारे विघ्न हैं, इन पर सबसे बड़ा विघ्न है-वातावरण, परिस्थिति। जब तक परिस्थिति को देखने की हमारी दृष्टि होती है, तब तक समाधि की ओर आदमी नहीं चल सकता। आदमी देखता है कि सामने वाला व्यक्ति मुझे गालियां दे रहा है। क्या मैं कमजोर हूं? गाली देने की भावना नहीं, पर सामने वाला देता है उससे मैं कमजोर रहना नहीं चाहता, उसे यह अनुभव नहीं होना चाहिए कि यह कमजोर आदमी है। आदमी देखता है कि जीवन की यात्रा आनन्द से चल रही है। कठिनाई नहीं तो फिर इतने बुरे काम क्यों करने चाहिए? जब एक आदमी बुराई करके इतना बड़ा आदमी बन गया तो क्या मैं नहीं बन सकता? मैंने हिन्दुस्तान के बहुत बड़े उद्योगपति से पूछा-'तुम्हारे पास इतना पैसा था, करोड़ों-करोड़ों रुपये, फिर तुमने इतने बुरे काम क्यों किए कि तुम संकट में पड़ गए?' वह बोला- 'महाराज! सच्ची बात बताऊं आपको, मैं जब छोटा था, मेरे मन में एक भावना जागी कि मुझे हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा उद्योगपति बनना है। बिड़ला, टाटा, सबको नीचे कर देना है, सबसे आगे चले जाना है। इस भावना ने यह सब कुछ कराया।' जब तक यह दृष्टिकोण रहता है कि दूसरे को देखू, तब तक ये विघ्न समाप्त नहीं हो सकते। सारे विघ्नों को समाप्त करने का पहला सुख है-दूसरों की ओर झांकने की दृष्टि को कम करना और अपनी दृष्टि में आकर्षण पैदा करना। यह सूत्र जब जीवनगत हो जाता है तब विघ्न कम होते जाते हैं। यदि यह सूत्र जीवनगत नहीं होगा तो विघ्न बढ़ते जाएंगे और आदमी उनमें उलझता जाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy