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________________ १७८ अप्पाणं सरणं गच्छामि हो जाती हैं। साधना करे, धर्म की उपासना करे, आराधना करे, ध्यान करे, समाधि का अभ्यास करे और आदतें न बदले, उतना ही गुस्सा, उतना ही अहंकार, उतना ही कपट, उतना ही लालच, उतनी ही घृणा, ईर्ष्या, द्वेष बराबर चलता रहे तो लगता है कि हमने शरीर के दो भाग बना लिये। शरीर के आधे हिस्से में धर्म चलता रहे और आधे हिस्से में ये बुरी आदतें चलती रहें। आधे में गर्म पानी और आधे में ठंडा पानी, दोनों बराबर चलते रहें। जब गर्म की जरूरत हो, गर्म निकाल लो और ठंडे की जरूरत हो तो ठंडा पानी निकाल लो। जब धर्म की जरूरत हो तो धर्म कर लें और लड़ने की, बुरी आदतों की जरूरत हो तो उन्हें निकाल लें। अगर ऐसा होता है तो इससे बड़ी जीवन की कोई विडम्बना नहीं हो सकती और धर्म की अर्थशून्यता नहीं हो सकती। यदि धर्म ऐसा ही है तो वैसे धर्म का भार ढोने की जरूरत नहीं लगती। व्यक्ति के मन में तो इतनी प्रतिक्रिया भी जाग सकती है कि ऐसे धर्म को समाप्त कर दिया जाये तो कोई भी हानि होने वाली नहीं है। धर्म का, ध्यान का और समाधि का आध्यात्मिक पहलू है आदतों में परिवर्तन। हमारी आदतें बदलनी चाहिए। मैं नहीं कहता, आज ही आपने ध्यान की आराधना शुरू की, समाधि की आराधना शुरू की, आज ही आप बिलकुल बदल जायेंगे। ऐसा स्वाभाविक नहीं। किन्तु आज ही परिवर्तन का क्रम शुरू हो जायेगा। गर्म घड़े पर एक पानी की बूंद डाली, ऐसा तो नहीं कि पहली बूंद डाली और घड़ा गीला हो जायेगा। यह तो नहीं हो सकता, किन्तु घड़ा गीला तब हो सकता है कि एक-एक बूंद डालते-डालते एक क्षण ऐसा आता है कि घड़ा बिलकुल गीला हो जाता है। क्या अन्तिम बूंद ने घड़े को गीला किया है? अन्तिम बूंद गीला नहीं कर सकती। यदि पहली बूंद घड़े को गीला नहीं कर पाती तो अन्तिम बूंद घड़े को गीला कभी नहीं कर सकती। यदि साधना का, समाधि का, ध्यान का पहला क्षण आदतों में परिवर्तन नहीं ला सकता तो कोई भी क्षण फिर परिवर्तन नहीं ला सकता। पहले ही क्षण आदतों में परिवर्तन शुरू हो जाना चाहिए, तब सार्थकता है, तब कुछ अर्थ समझ में आता है कि धर्म का अर्थ है, ध्यान का भी कोई प्रयोजन है और समाधि का भी कोई उद्देश्य है। यदि यह न हो तो निरर्थक, निष्प्रयोजन और निरुद्देश्य बात चले, इससे बड़ी कोई मूर्खता नहीं हो सकती। हम पदार्थों को नहीं, पदार्थ हमें भोगते हैं हमारी आदतों में परिवर्तन आना चाहिए। उस परिवर्तन की कसौटी है हमारा व्यवहार । समाधि की साधना करने वाले का व्यवहार बदलना चाहिए, दूसरे के प्रति दृष्टिकोण बदलना चाहिए, दूसरों के प्रति भावना बदलनी चाहिए, दूसरे के प्रति सोचने का तरीका बदलना चाहिए। पदार्थ के प्रति भी हमारा दृष्टिकोण बदलना चाहिए। जो व्यक्ति समाधि की साधना नहीं करता उसे पदार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003126
Book TitleAppanam Saranam Gacchhami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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