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१७. चित्त - समाधि के सूत्र (१)
आत्मा की ज्योति एक पवित्र ज्योति है, अखण्ड ज्योति है । वह ऐसी है जो कभी नहीं बुझती। ऐसी लौ, ऐसी दीप - शिखा, जो कभी प्रकम्पित नहीं होती । पर जब तक हम समाधि का अनुभव नहीं करते, उस ज्योति का हमें पता ही नहीं चलता और जब पता ही नहीं चलता तो उसके प्रति हमारा कोई झुकाव नहीं होता, कोई आकर्षण नहीं होता और उसकी दिशा में प्रस्थान भी नहीं होता । प्रस्थान के लिए ज्ञान होना जरूरी है । समाधि की साधना का सारा प्रयत्न उस महाज्योति की दिशा में जाना और उसका पता लगाना है। लोग कहते हैं, आत्मा का दर्शन नहीं होता, आत्मा का साक्षात्कार नहीं होता । आपने कब खोजा उस महाज्योति को ? कब खोजने का प्रयत्न किया? पानी पृथ्वी के तल में भरा पड़ा है, पर आदमी खोजता नहीं तब तक पानी का पता नहीं चलता । चाहे अनुभवी आदमी खोजे, चाहे यन्त्र के द्वारा खोजे, आखिर खोजना ही पड़ेगा। खोजता है तो पता चलता है कि यहां पानी का सोता है । पर केवल खोजने से ही काम नहीं चलता । खोजने के बाद खोदना पड़ता है। अगर खोज ले और खोदे नहीं तो काम नहीं बनता। पहले खोजना पड़ता है और फिर कुआं खोदना पड़ता है । तब भीतर सोता फूटता है । अन्तराल में जो पानी बहता है वह ऊपर की ओर आता है, जल उपलब्ध हो जाता है । हमारी प्यास बुझ जाती है । खोजना और खोदना-ये दोनों बातें जरूरी हैं । आत्मा का दर्शन हो सकता है, आत्मा का साक्षात्कार हो सकता है, चैतन्य का अनुभव हो सकता है, पर दोनों शर्तें पूरी करनी होंगी। पहले खोजना होगा, फिर खोदना होगा। खूब गहराई में जाना होगा। गहरे, गहरे और गहरे में जाना होगा ।
शरीर की गहराई
एक भाई ने आज पूछा - 'आप प्रयोग- काल में कहते हैं कि गहरे में जाओ, गहरे में जाओ। कहां जाएं? शरीर के आगे से पीछे तक एक वितस्ती मात्र है, बहुत छोटा है । इतना गहरा कहां है कि गहरे में जाएं। सचाई यह है कि जब हम इन्हीं आंखों से देखते हैं तब यह वितस्ती मात्र लगता है, कहीं गहराई नहीं लगती । कुआं कहीं खोदना पड़ता है तो दस-बीस फुट की गहराई में तो जाना ही पड़ता है और यदि रेगिस्तान में खोदना पड़ता है तो सैकड़ों फुट की गहराई में जाना पड़ता है । पर हमारा शरीर तो इतना छोटा, पतला और संकरा है कि वहां तो गहराई जैसी कोई बात ही नहीं है । यदि हम चर्म चक्षु से देखेंगे
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