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१२ समाधि के मूल सूत्र
हमारी दृष्टि कभी ऊपर जाती है और कभी नीचे, कभी पत्तों पर जाती है और कभी जड़ पर, कभी ध्वज पर जाती है और कभी नींव पर । जब केवल सुन्दरता की बात होती है या कोई सूचना प्राप्त करनी होती है तब ध्वज उसका माध्यम बनता है । मकान पर ध्वज लहराता है, पता लग जाता है कि यह किसका है ? ध्वज सुन्दर भी लगता है। किन्तु जब तीन मंजिले मकान को सात मंजिला बनाना होता है तब दृष्टि ध्वज की ओर नहीं जाती, वह नींव को देखती है कि नींव मजबूत है या नहीं? वह सात मंजिलों के भार को झेलने में सक्षम है या नहीं? यदि नींव मजबूत है तो उस पर कितनी ही मंजिलें खड़ी की जा सकती हैं । उस समय ध्वज नहीं देखा जाता और यदि कोई सुन्दर ध्वज के आधार पर मंजिलें चढ़ाना चाहे तो वह निरा मूर्ख होगा ।
प्रत्येक दृष्टि का अपना उपयोग है, अपना मूल्य है। ध्वज का अपना मूल्य है और नींव का अपना मूल्य है ।
व्यक्ति जीवन का निर्माण करना चाहता है। इसके लिए उसे आधार पर दृष्टिपात करना होगा। यदि जीवन की नींव सुदृढ़ है तो उस पर अनेक मंजिलें खड़ी की जा सकती हैं । जो व्यक्ति अपने जीवन की नींव को देखे बिना निर्माण प्रारम्भ कर देता है, वह पछताता है । निर्माण कभी पूरा हो नहीं सकता । समाधि के पांच आधार
जीवन की समस्याओं और दुःखों से निपटने के लिए समाधि बहुत जरूरी है । किन्तु समाधि तब घटित होती है जब मूल आधार सुदृढ़ होता है । समाधि के मूल आधार क्या हैं?
समाधि का पहला आधार है-आत्मा की अमरता । जो व्यक्ति अपने आपको इस शरीर की निष्पत्तिमात्र मानता है मेरा अस्तित्व, मेरा चैतन्य इस शरीर से निष्पन्न है - यह मानता है- वह कभी समाधि को उपलब्ध नहीं हो सकता । जो ऐसा नहीं मानता, वह समाधि को प्राप्त हो सकता है । जो व्यक्ति ऐसा मानता है कि डिम्ब और शुक्राणु के योग से मैं पैदा हो गया । यही मेरे अस्तित्व का मूल कारण है । कुछ क्रोमोसोम मिले, गुणसूत्र मिले और मेरा अस्तित्व प्रकट हो गया, ऐसा मानने वाला व्यक्ति कभी समाधि को उपलब्ध नहीं हो सकता। इस मान्यता का आधार केवल वर्तमान का जीवन है। जिसका आधार वर्तमान का जीवन होता है, उसके लिए गहरी समाधि की जरूरत नहीं
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