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उपसंहार
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शब्दों की रमणीय सज्जा, भावों की अभिव्यंजना, उक्ति वैचित्य, चित्रात्मकता, मार्मिकता, अदोषता, कोमलता, रसमयता आदि जितने भी श्रेष्ठ काव्य के गुण हैं, सब स्तुतियों में समेकित रूप से पाये जाते है।
स्तुतियों में भक्ति के विभिन्न भावों-आर्तभाव, जिज्ञासा भाव, प्रेमभाव, प्रपत्तिभाव, शरणागतिभाव एवं दैन्यभावादि की नैसर्गिक अभिव्यंजना हुई है।
लोकोत्तर आलादजनक, ब्रह्मस्वादसहोदर आस्वाद्यरस स्तुतियों का प्राणभूत तत्त्व है । स्तुतियों में रस का सर्वत्र साम्राज्य व्याप्त है। या यह भी कह सकते हैं कि स्तुतिया केवल अमृतस्वरूप सुस्वाद रस ही है जिनका जीवन भर पान करते रहना चाहिए। भक्तिरसामृत सिन्धु में प्रतिपादित सभी मुख्यामुख्य रसों की उपलब्धि यहां होती है ।
___ अलंकरोतीति अलंकार : अलंक्रियतेऽनेन इति अलंकारः "अर्थात सौन्दर्य का पर्याय अथवा सौन्दर्य का साधन अलंकार है। साहित्याचार्यों का यह द्विविध मत उपलब्ध होता है । मम्मटादिकों ने गुण को काव्य की आत्मा और अलंकार को शोभाधायक या उत्कर्षाधायक बाह्य तत्त्व माना है। स्तुतियों में विविध अलंकारों का चारूविन्यास हुआ है । स्तुतियों में भाषा की सम्प्रेषणीयता एवं भावों की सफल अभिव्यक्ति के लिए अलंकारों का प्रयोग किया गया है। यहां यमक, श्लेष, अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, दीपक, परिसंख्या, परिकर, यथासंख्य, काव्यलिंग आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
आंग्ल "इमेज' या इमेजरी" शब्द का हिन्दी रूपान्तर बिम्ब है। बिम्ब विषयक धारणा पाश्चात्त्य आलोचकों की. देन है। भारतीय आचार्यों ने शब्दान्तर मात्र से इसका उल्लेख किया है । भागवत में बिम्ब शब्द का उल्लेख भी मिलता है।
कोई भी उत्कृष्ट काव्य बिम्ब से रहित नहीं होता है। बिम्ब के द्वारा वर्ण्य-विषय का स्पष्ट चित्र उभरकर सामने आ जाता है। बिम्ब से बुद्धि एवं भावना विषयक उलझने समाप्त हो जाती है । भागवतीय स्तुतियों में सभी प्रकार के बिम्बों का प्राचुर्य है । अन्तःकरणेन्द्रिय ग्राह्य भाव और प्रज्ञा बिम्ब, बाह्यकरणेन्द्रिय ग्राह्य-रूप, रस, गंध, श्रवण और स्पर्श बिम्बादि का भागवत में प्रभूत प्रयोग उपलब्ध होता है।
पुराणों की शैली प्रतीकात्मक शैली है । विविध गूढ़ तत्त्वों को प्रतीक के माध्यम से पुराणकार ने सहज रूप से अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है। भाव पदार्थों की मूर्त अभिव्यक्ति प्रतीक है।
भागवतीय स्तुतियों में विविध छन्दों का प्रयोग हुआ है। अनुष्टुप्, उपजाति, वसन्ततिलका, वंशस्थ, उपेन्द्रवंशा, इन्द्रवंशा, मालिनी, प्रहर्षिणी,
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