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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। अधिक से अधिक सुगन्ध या दुर्गन्ध कह सकते हैं।
श्रीमद्भागवत में इस प्रकार के अनेक बिम्ब पाये जाते हैं । भागवत के गन्ध बिम्ब अनेक रूपों में पाये जाते हैं-(१) यज्ञीय धूम से उत्पन्न गन्ध (२) प्राकृतिक पदार्थ परक-सुमन, चन्दन, मलयानिल, इत्यादि तथा (३) शरीर परक गन्ध-भगवान् जब जन्म लेते हैं तो सुगन्ध व्याप्त हो जाता है । जब राक्षस अवतरित होते हैं तो दुर्गन्ध चतुर्दिक जीवों को कष्ट देने लगता है । १. यज्ञोय पदार्थों से उत्पन्न-गन्ध बिम्ब
श्रीमद्भागवत में विभिन्न स्थलों पर विविध प्रकार के भक्त अपने उपास्य के प्रति भक्ति भावना से युक्त होकर यज्ञ समर्पित करते हैं। उन यज्ञों में विविध प्रकार के सुगन्धित द्रव्य अग्नि देव को तथा केसर-कस्तुरी भगवान् के शरीर में लेप किया जाता है, जिससे वातावरण सुगन्धित हो जाता है। दक्ष प्रजापति का सृष्टि विषयक यज्ञ एवं राजा पृथ का यज्ञ प्रसिद्ध है । राजा पृथु के यज्ञशाला से उत्पन्न सुगन्ध चतुर्दिक परिव्याप्त हो जाता है। २. सुमनपरक गन्धबिम्ब
भगवान् श्रीकृष्ण का जब प्रादुर्भाव काल आया तब सारे सुमन-कमल, चमेली, बेली इत्यादि आधी रात में खिल गये, वृक्षों की पंक्तियां रंग-बिरंगे पुष्पों के गुच्छों से लद गयी। उस समय शीतल वायु पुष्पों के सुगन्ध को चारों दिशाओं में प्रसृत कर रही थीं---
ववौ वायुः सुखस्पर्शः पुण्यगन्धवहः शुचिः ।
अग्नयश्च द्विजातीनां शान्तास्तत्र समिन्धत ॥' देवता लोग पुष्पों की वर्षा करने लगे---उन पुष्पों का सुगन्ध चतुदिक् फैल गया है। ३. शरीर परक गन्ध बिम्ब
सूतिका गृह में जब भगवान् अवतरित हुए तब पूरा गृह जगमगा गया तथा सुन्दरगन्ध व्याप्त हो गया। भगवान के शरीर से एक दिव्य सुगंधी निकलती है, जो भक्तों को आह्लादित करती है । कुब्जा केसर आदि लगाकर सुगन्ध से युक्त हो प्रभु के पास काम-याचना करती है। १. श्रीमद्भागवत १०.३.४ २. तत्रैव १०.४२.३-४
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