________________
श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में अलंकार
२२५ कर आनन्द की सृष्टि करते है ।
दिव्यास्त्र से डरकर उत्तरा चिल्लाती हुई भाग रही है। उसकी करुण पुकार सुनकर स्वयं भगवान् भी आकृष्ट हो जाते हैं ।' गंगा की धारा अपनी कल-कल, छल-छल ध्वनि से योगीजन को भी आह्लादित करती है। गंगाधारा की ध्वनि श्रवण का विषय होती है। कुन्ती के ये शब्द "गङगेवोधमुदन्वति" श्रवण या शब्द बिम्ब को उजागर करते हैं।
____ भक्तों के मधुर एवं सरस शब्द एक अद्भुत सौन्दर्य की उत्पत्ति करते हैं । भीष्म कहते हैं महाभारत युद्ध में हे प्रभो ! आप जैसे सिंह हाथी पर दहाड़ते हुए टूट पड़ता है वैसे ही हम पर टूट पड़े थे। यहां सिंह की दहाड़ और हाथी के गम्भीर गर्जन का बिम्ब श्रवणेन्द्रिय ग्राह्य होने से शब्द बिम्ब या ध्वनि बिम्ब है --"हरिरिव हन्तुमिभं'२ । भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथि के रूप में घोड़ों की लगाम थामे हुए थे। युद्ध क्षेत्र में शत्र पक्ष के लोगों को देखकर घोड़े हिनहिना रहे थे। घोड़ों का हिन-हिनाहट श्रवणन्द्रिय ग्राह्य होने से शब्द बिम्ब है । धृतयरश्मिनि तच्छ्येिक्षणीये" । युधिष्ठिर के राजसूय यक्ष के प्रत्विजों की मन्त्र ध्वनि कर्णकुहरों में प्रविष्ट कर सुसुप्त राग को उद्बोधित कर देती है। युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ में राजाओं का कोलाहल, वाद्य-ध्वनियों की आवाज अतिशय आनन्द की उत्पत्ति करते
स्तुति करते-करते पितामह श्रीकृष्ण में ही बिलीन हो गये। सभी देवता ऋषि लोग नगारे तथा विविध प्रकार के वाद्ययन्त्र बजाने लगे। ऋषि लोग वैदिक मन्त्रों का उच्चारण करने लगे। इस प्रकार नगारों की आवाज, मन्त्रों एवं साधु-साधु शब्द की ध्वनियां उस शान्त क्षण में गूंज उठीं। ये सब ध्वनि बिम्ब का निर्माण करते है
तत्र दुन्दुभयो नेदुर्देवमानववादिताः ।
शशंसुः साधवो राज्ञां खात्पेतुः पुष्पवृष्टयः ।।
भगवान् श्रीकृष्ण कालियनाग का दमन करने लगे। भगवान् के पाद प्रहार से व्यथित कालियनाग की फुफकार ध्वनि कर्णपुटों के सामने शब्दबिम्ब प्रकट करती है। भगवान् नृसिंह के भयंकार हुंकार से त्रैलोक्य १. श्रीमद्भागवत १.८.९-१० २. तत्रैव १.९.३७ ३. तत्रैव १.९.३९ ४. तत्रैव १.९.४१ ५. तत्रैव १.९.४५ ६. तत्रैव १०.१६.२४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org