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________________ २२० श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन उपर्युक्त भेद श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में यथास्थान प्राप्त होते हैं। इन बिम्ब-भेदों के अतिरिक्त एक अन्य प्रकार के काव्य बिम्ब, जो जाति या योनि विशेष के आधार पर हैं श्रीमद्भागवत में पाये जाते हैं । वे तीन प्रकार के हैं--१. देव विशेष से सम्बन्धित २. मनुष्य योनि से सम्बन्धित एवं (३) पशुविशेष एवं प्राकृतिक सम्पदाओं से सम्बन्धित काव्य बिम्ब । उद्विन्यस्त वर्गीकृत बिम्बों का सोदाहरण विवेचन श्रीमद्भागवत की स्तुतियों के आधार पर किया जाएगा। रूप बिम्ब ____ रूप बिम्ब नेत्रेन्द्रिय ग्राह्य है। इसे चाक्षुष बिम्ब भी कहते हैं । मनुष्य के हृदय में सदा अनुबुद्ध राग समावेशित रहता है। किसी कारणवश पुनः जागरित हो जाता है। कवि के रसात्मक वर्णनों से आखों के सामने वस्तु विशेष का प्रत्यक्ष सौन्दर्य स्थापित हो जाता है, उसे ही रूप बिम्ब या चाक्षुष बिम्ब कहते हैं। श्रीमद्भागवत की स्तुतियों में यह बिम्ब पाया जाता है। जब भक्त आर्तभाव से या सख्य या किसी भाव से राग या उत्कण्ठा से प्रभु का ध्यान करता है, स्तुतियों का गायन करता है, तब श्रोतागण को या पाठक को उसके द्वारा वर्णित उपास्य का प्रत्यक्ष सौन्दर्य नेन्द्रिय के सामने प्रकट हो जाता है। महाप्रास्थानिक वेला में उपन्यस्त भीष्मस्तवराज का एक सुन्दर बिम्ब अवलोकनीय है । पितामह अपने उपास्य के अद्भुत सौन्दर्य का वर्णन इन शब्दों में करते हैं त्रिभुवनकमनं तमालवणं रविकरगौरवराम्बरं दधाने। वपुरलककुलावृताननाब्जं विजयसखे रतिरस्तु मेऽनवद्या ॥ उपर्युक्त श्लोक के अवलोकन से भगवान् श्रीकृष्ण कमनीय रूप में प्रत्यक्ष हो जाते हैं -देखिए--आप भी देख सकते --उस परमेश्वर के रमणीय रूप को -जो त्रिलोकी में सबसे सुन्दर एवं तमालवृक्ष के समान सांवला है। जिनके शरीर पर सूर्य रश्मियों के समान श्रेष्ठ पिताम्बर सुशोभित हो रहा है । कमल सदृश मुख पर धुंघराली अलके लटक रही हैं। इस श्लोक के अध्ययन से लगता है कि प्रभु श्रीकृष्ण सम्पूर्ण रूपसौन्दर्य के साथ आंखों के सामने प्रकट हो गये हैं। यह स्थिर एकल बिम्ब का उदाहरण है। एक और प्रभु की झांकी देखिए---आर्त गजेन्द्र की रक्षा के लिए भगवान् स्वयं गरूड़ पर चढ़कर, सुदर्शन चक्र से सुशोभित आकाश मार्ग से १. श्रीमद्भागवत १.९.३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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