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श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन २. ऐसे एक भी शब्द का प्रयोग नहीं होना चाहिए जो हमें मूर्त रूप __ खड़ा करने में सहायता न दें। ३. छन्दोबद्धता पर ध्यान न देकर संगीतात्मकता के आधार पर
काव्य सर्जना होनी चाहिए।
उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से काव्य बिम्ब की निम्नलिखित विशेषताएं प्रतीत होती है
१. काव्य बिम्ब का माध्यम शब्द है । २. वह चित्रात्मक होता है। ३. उसमें इन्द्रियानुभव जुड़ा रहता है । ४. उसमें मानवीय संवेदनाएं सन्निहित रहती है। ५. वह रूपात्मक अर्थात् मूर्त होता है।
भारतीय आलोचकों ने भी काव्य बिम्ब को पारिभाषित करने का प्रयास किया है । डॉ. नागेन्द्र की धारणा है कि "काव्य सर्जना के क्षणों में अनुभूति के नानारूप कवि की कल्पना पर आरूढ़ होकर जब शब्द अर्थ के माध्यम से व्यक्त होने का उपक्रम करते हैं, तो इस सक्रियता के फलस्वरूप अनेक मानस छवियां आकार धारण करने लगती हैं, आलोचना की शब्दावली में इन्हें ही काव्य-बिम्ब कहते हैं ।' डॉ. भागीरथ मिश्र के अनुसार वस्तु, भाव या विचार को कल्पना या मानसिक क्रिया के माध्यम से इन्द्रिय गम्य बनाने वाला व्यापार ही बिम्ब विधान है ।
बिम्ब में प्रतिबिम्ब का वैशिष्ट्य होता है। प्रतिबिम्बन किसी मूल तत्त्व का ही होता है। बिम्ब-प्रत्यक्षीकरण की प्रक्रिया में पुन: सर्जन की स्थिति अनिवार्यतः रहती है । पुनः सर्जन उन संस्कारों का होता है जो मानस में पहले से विद्यमान रहते हैं । वे संस्कार जन्मजात एवं अनुभवजात होते हैं। नेत्रादि इन्द्रियों के द्वारा रूपादि विषयों का संयोग होने से व्यक्ति बाह्य जगत् के सम्पर्क में आता है। पहले दृष्टिपथ एवं अनुभूति सीमा में आये रूप, रस, गंध आदि विषय उसके मानस में पुनः उद्बुद्ध हो जाते हैं। उन्हें ही वह कविता में प्रकाशित कर देता है । उनके सम्पर्क में पहले से ही आया सहृदय काव्य-भावना करते समय उनका साक्षात् करने लगता है। रागसंबलित बिम्ब-बोध ही उसके अंतश्चमत्कार का कारण बनता है।
जिस चेतना द्वारा उपर्युक्त उद्बुद्धीकरण संभव होता है उसे ही सामान्यतः कल्पना कहा जाता है। कल्पना का उर्ध्वगामी होकर आत्मसाक्षात्कार के लिए विकल होना बिम्ब निर्माण का कारण है। १. डॉ० नागेन्द्र ..काव्य बिम्ब, प्रथम संस्करण १९६७, पृ० ५१ २. डॉ० भागीरथ मिश्र--काव्य शास्त्र, पृ० २४४
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