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________________ २०० श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन कश्यपजी के तेज की उपमा आग से तथा दिति के गर्भ की उपमा काष्ठ से दी गई है। स्वकृतविचित्रयोनिषु विशन्निव हेतुतया तरतमतश्चकास्स्यनलवत् स्वकृतानुकृतिः ।। जैसे अग्नि छोटी बड़ी लकड़ियों और कर्मों के अनुसार प्रचुर अथवा अल्प परिणाम में या उत्तम अधम रूप में प्रतीत होती है उसी प्रकार हे प्रभो! आप अपने द्वारा बनाई, ऊंच-नीच सभी योनियों में कहीं उत्तम, कहीं मध्यम कहीं अधम रूप में प्रतीत होते हैं । "इस श्लोक में भगवान् की उपमा अग्नि से तथा विभिन्न प्रकार की योनियों की उपमा लकड़ियों से दी गई है। श्रीमद्भागवतकार उपमानों का ग्रहण सिंहादि पशुयोनि के जीवों से भी करते हैं । भीष्मस्तवराज का एक श्लोक स्वनिगममपहाय मत्प्रतिज्ञामृतमधिकर्तुमवप्लुतो रथस्थः । धृतरथचरणोऽभ्ययाच्चलदगु हरिरिव हन्तुमिभं गतोत्तरीयः ॥' अर्थात् मैंने प्रतिज्ञा कर ली थी कि आपको शस्त्र ग्रहण कराकर ही छोड्गा, उसे सत्य एवं ऊंची करने के लिए अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर जैसे सिंह हाथी को मारने के लिए टूट पड़ता है वैसे ही रथ का पहिया लेकर भगवन मुझ पर झपट पड़े। यहां भगवान् श्रीकृष्ण की उपमा सिंह से, तथा भीष्म की उपमा हाथी से दी गई है। श्रीमद्भागवत में प्रकृति जगत् स्रोतमूलक एवं ग्रहनकत्रादिस्रोत मूलक उपमान भी बहुशः प्राप्त होते हैं । सूर्य विषयक उपमान श्रीभीष्मराजस्तव का सौन्दर्य और बढ़ा देता है तमिमहमजं शरीरभाजां हृदि हदिधिष्ठितमात्मकल्पितानाम् । प्रतिदृशमिव नकधार्कमेकं समधिगतोऽस्मि विधूतभेदमोहः ॥ जैसे एक ही सूर्य अनेक आंखों से अनेक रूपों में दिखाई पड़ता है, वैसे ही अजन्मा भगवान् श्रीकृष्ण अपने ही द्वारा रचित अनेक शरीरधारियों के हृदय में अनेक रूप से जान पड़ते हैं, वास्तव में वे एक और सबके हृदय में विराजमान हैं। उन्हीं भगवान् श्रीकृष्ण को मैं भेदभ्रम रहित होकर प्राप्त हो गया हूं। यहां पर भगवान् श्रीकृष्ण की उपमा सूर्य से दी गई है। जब भगवान् श्रीकृष्ण द्वारका से चले जाते हैं, तब द्वारका वासियों की १. श्रीमद्भागवत १०.८७.१९ २. तत्रैव १.९.३७ ३. तत्रैव १९.४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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