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भागवत की स्तुतियां : स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तु विश्लेषण
को तितर-बितर कर देती है उसी प्रकार भगवान के नामगुणकीर्तन एवं श्रवण से सारे पाप विनष्ट हो जाते हैं....
संकीर्त्यमानो भगवाननन्तः श्रुतानुभावो व्यसनं हि पुंसाम् । प्रविश्य चित्तं विधुनोत्यशेषं यथा तमोऽर्कोऽभ्रमिवातिवातः ॥'
१. श्रीमद्भागवत १२।१२।४७
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