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________________ भागवत की स्तुतियां स्रोत, वर्गीकरण एवं वस्तु विश्लेषण ९९ देव रुक गये, संपूर्ण संसार में त्राहि-त्राहि मच गयी । देवगण भगवान् विष्णु से अपने उद्धार की याचना करने लगे 1 नैवं विदामो भगवन् प्राणरोधं चराचरस्याखिल सत्त्वधाम्नः । विधेहि तन्नो वृजिनाद्विमोक्षं प्राप्ता वयं त्वां शरणं शरण्यम् ॥ सांसारिक सम्बन्धिजनों से तिरस्कृत होकर माता द्वारा निर्देश प्राप्त कर बालक ध्रुव विश्वनियन्ता एवं भक्तों के परमहितैषी परम प्रभु का शरणपन्न होता है । उसके कठोर तप से प्रसन्न भगवान् विष्णु शंख चक्र गदाधर रूप में प्रकट होकर ध्रुव को दर्शन देते हैं। योगीजन दुर्लभ दर्शन को प्राप्त कर बालक ध्रुव की शेष वासना भी समाप्त हो गयी । प्रभु प्रसाद से वेदवाणी प्राप्त कर उनकी स्तुति करने लगा -- प्रभो आप सर्वशक्ति सम्पन्न हैं, आप ही मेरे अन्तःकरण में सोयी हुई वाणी को सजीव करते हैं, तथा हाथ, पैर, कान और त्वचा आदि अन्यान्य इन्द्रियों एवं प्राणों की भी चेतनता देते है । मैं आप अन्तर्यामी भगवान् को प्रणाम करता हूं । आप एक होते हुए अनन्त रूपों में भासित होते हैं । हे प्रभो ! अनन्त परमात्मन् ! मुझे तो आप उन विशुद्ध हृदय महात्मा भक्तों का संग दीजिए जिनका आपमें अविच्छिन्न भक्ति भाव है भक्ति मुहुः प्रवहतां त्वयि मे प्रसङ्गो, भूयादनन्तमहताममलाशयानाम् । येनाञ्जसोल्बणमुरुव्यसनं भवाब्धि, नेष्ये भवत्गुणकथामृतपानमत्तः ॥ यह निष्काम स्तुति है | बालक ध्रुव केवल भगवद्दास संगति की कामना करता है । इस स्कन्ध में सुविख्यात नृपति पृथु की दो स्तुतियां- एक वन्दीजनों द्वारा तथा दूसरी पृथिवी के द्वारा की गई है। पहली प्रशंसा गीत है तो दूसरी आर्त स्तुति । पृथु द्वारा वारित किए जाने पर भी देवों द्वारा उपदिष्ट होकर वन्दीजन महाराज पृथु की स्तुति करते हैं। इस स्तुति में राजा पृथु के अद्भुत पराक्रम का गायन किया गया है । साथ-साथ 'राजा नारायणांश होता है,' इस विख्यात सिद्धांत का भी प्रतिपादन किया गया है--- अयं तु साक्षाद् भगवांस्त्यधीशः कूटस्थ आत्मा कलयावतीर्णः । यस्मिन्नविद्यारचितं निरर्थकं पश्यन्ति नानात्वमपि प्रतीतम् ॥' पृथु के राज्य में पूर्णतः अन्नाभाव के कारण आकाल पड़ चुका था । १. श्रीमद्भागवत ४८८१ २. तंत्र व ४।९।६-१७ ३. तत्र व ४।९।११ ४. तत्रैव ४।१६।२-२७ ५. तत्रैव ४।१६।१९ Jain Education International 2 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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