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________________ प्राक्कथन पुराणों में विशालता की दृष्टि से स्कन्ध पुराण सबसे बड़ा है पर विषय वस्तु की दृष्टि से श्रीमद्भागवत पुराण का महत्त्व अद्वितीय है। इसमें महापुरुष एवं देवों के जीवन-वृत्त, आख्यान, उपाख्यान, रूपक-कथाएं, नीति एवं अध्यात्मपरक उपदेशों और शिक्षाओं के अतिरिक्त भक्तिरस से परिपूर्ण १३२ स्तुतियां उपन्यस्त हैं । श्रीमद्भागवत की स्तुतियों का समीक्षात्मक अध्ययन नामक प्रस्तुत शोध प्रबन्ध आठ अध्याओं में विभक्त है। प्रत्येक अध्याय के उपशीर्षकों में भक्तिरस से प्लावित स्तुति काव्य से सम्बद्ध विभिन्न पक्षों का गम्भीर एवं महत्त्वपूर्ण विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। विषय गम्भीर होने पर भी उसका प्रतिपादन सरस, प्रांजल एवं सहज-ग्राह्य भाषा में किया गया है । स्तुति महापुरुष, देव अथवा किसी समर्थ व्यक्ति की हो सकती है। समर्थ के गुणों पर विश्वास, श्रद्धा और आस्था से भक्ति का उद्रेक होता है और भक्ति का उद्रेक ही स्तुति-काव्य की जन्मभूमि है। स्तुतियों का परम प्रयोजन दुःख निवारण या आत्मविशुद्धि की भावना है । महर्षि वशिष्ठ की उक्ति है कि दुःख के समय मनुष्य को हरिस्मरण करना चाहिए। इसी उपदेश को यादकर द्रौपदी ने अपने चिरहरण की दुःखद स्थिति में कृष्ण को पुकारती है गोविन्द द्वारिकावासिन् कृष्ण गोपीजनप्रिय । कौरवः परिभूतां मां किं न जानासि केशव ॥ हे नाथ हे रमानाथ ब्रजनाथातिनाशन । कौरवार्णवमग्नां मामुद्धरस्व जनार्दन ॥ कृष्ण कृष्ण महायोगिन् विश्वात्मन् विश्वभावन । प्रपन्नां पाहि गोविन्द कुरुमध्येऽवसीदतीम् ॥ -महाभारत, सभापर्व ६८.४१-४३ यह स्तुति काल की दृष्टि से अतिप्राचीन है और श्रीमद्भागवत पुराण की स्तुतियों का उपजीव्य है । पूर्वकृत कर्मों के संस्कार से संसारिक जीव मोह, क्रोध, मान, माया, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003125
Book TitleShrimad Bhagawat ki Stutiyo ka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Pandey
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages300
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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