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अध्याय १६ : ३८१
स्वस्थ व्यक्ति को शरीर से एक, दो इंच की दूरी तक कुछ कम्पन दीख रहे हैं। प्रतिदिन के अभ्यास से यह और स्पष्ट होता चला जाएगा। ___ जो व्यक्ति ध्यानस्थ या सद्विचारशील है उसके मस्तिष्क के पीछे इसे देखा जा सकता है।
इसी प्रकार अपनी अंगुलियों या हाथ की प्राण ओरा को भी देखा जा सकतन है। हाथ या अंगुलि को काले गत्ते पर या बोर्ड पर रख, अधखुली पलकों से देखें। अभ्यास सधने पर उसकी 'ओरा' दीखने लग जाएगी।
उपकारापकारौ च, विपाकं वचनं तथा।
कुरुष्व धर्ममालम्ब्य, क्षमां पञ्चावलम्बनं ॥३०॥ ३०. पांच कारणों से मुझे क्षमा का सेवन करना चाहिए। वे पांच ये हैं :
१. इसने मेरा उपकार किया है इसलिए इसके कथन या
प्रवृत्ति पर मुझे क्रोध नहीं करना चाहिए-मुझे क्षमा
रखनी चाहिए । २. क्षमा नहीं रखने से अर्थात् क्रोध करने से मेरी आत्मा का अपकार-अहित होता है इसलिए मुझे क्षमा रखनी
चाहिए। ३. क्रोध का परिणाम बड़ा दुःखद होता है इसलिए मुझे
क्षमा रखनी चाहिए। ४. आगम की वाणी है कि क्रोध नहीं करना चाहिए इसलिए
मुझे क्षमा नहीं रखनी चाहिए। ५. 'क्षमा मेरा धर्म है'- इसलिए मुझे क्षमा रखनी चाहिए।
आर्जवं वपुषो वाचो, मनसः सत्यमुच्यते ।
अविसम्वादयोगश्च, तत्र स्थापय मानसम् ॥३१॥ ३१. काया, वचन और मन की जो सरलता है वह सत्य है । कहनी और करनी को समानता है वह सत्य है। उस सत्य में तू मन को रमा।
१. 'ओरा'-आभामंडल या लेश्या विज्ञान के विषय में विस्तृत जानकारी के लिए युवाचार्य महाप्रज्ञ की सद्यः प्रकाशित पुस्तक 'आभामंडल' पठनीय है।
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