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३७४ : सम्बोधि
गए । बड़ा दुःखी हो गया। कहीं शान्ति नहीं मिली। किसी व्यक्ति ने उसे संत के पास भेज दिया। आया। संत ने कहा-'आंख खोलकर देखो, 'जीवन ओस की बूंद की तरह है, अब गया, तब गया। सबको जाना है।' शान्ति मिली। एक कविता लिखी--निश्चित ही जीवन एक ओस का कण है। मैं पूर्णतया सहमत हूं कि जीवन एक ओस का कण है। फिर भी यह आशा नहीं छूटती। सब देख लेने, जान लेने के बाद भी आदमी भविष्य की कल्पनाओं में जीने लगता है। वर्तमान को छोड़ देता है। महावीर कहते हैं.. गौतम ! शान्ति का सूत्र है.. 'जागरूकतापूर्वक जीना।
__ जागरूक व्यक्ति प्रमत्त नहीं होता। वह प्रत्येक क्षण शुभ भावन से भावित रहता है। इसलिए उसे मृत्यु का भय नहीं रहता। मृत्यु कभी आए, उसका भविष्य सुरक्षित है। किन्तु जो प्रमत्त हैं, खतरा उन्हीं के लिए है । वे अशुभ भावों से घिरे रहते हैं । वे हिंसा, झूठ, ईर्ष्या, द्वेष, राग, कलह आदि से मुक्त नहीं होते। इन स्थितयों में वर्तमान और भविष्य दोनों सुखद नहीं होते। जैसे भावों में व्यक्ति मरता है वह वैसी ही गति में उत्पन्न होता है। ___आयुष्य कर्म का बन्ध जीवन के तीसरे भाग में होता है। उस तीसरे का पता नहीं चलता कि यह तीसरा है। असावधान व्यक्ति वह क्षण चूक जाता है और उस क्षण चूकने का अर्थ है-जीवन को चूक जाना । इसलिए मैं कहता हूं-क्षणक्षण जागृत रहो। यह समझते रहो यह तीसरा ही क्षण है । जो इस प्रकार जीवनयापन करता है, सावधान, जागृत रहता है वह मृत्यु पर विजय पा लेता है, भय से मुक्त हो जाता है।
लेश्या-विज्ञान
कृष्णा नीला च कापोती, पापलेश्या भवन्त्यमः। तैजसो पद्मशुक्ले च, धर्मलेश्या भवन्त्यमूः॥२२॥
२२. पाप-लेश्याएं तीन हैं-कृष्ण, नील और कापोत । धर्मलेश्याएं भी तीन हैं-तेजस, पद्म और शुक्ल ।
तीवारम्भ-परिणतः, क्षुद्रः साहसिकोऽयतिः । पञ्चास्त्रव-प्रवृत्तश्च, कृष्णलेश्यो भवेत् पुमान् ॥२३॥
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