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३५८ : सम्बोधि
१. खाली पेट होना। २. भोजन सम्बन्धी बात सुना तथा भोजन को देखना। ३. क्षुधा-वेदनीय कर्म का उदय । ४. भोजन का सतत चिन्तन करना। हीनसत्त्वतया मत्या, भयवेद्योदयेन च । तस्यार्थस्योपयोगेन, भयसंज्ञा प्रजायते ॥५॥
५१. भय संज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है :
१. बल की कमी। २. भय सम्बन्धी बातें सुनना तथा भयानक दृश्य देखना। ३. भय-वेदनीय कर्म का उदय । ४. भय का सतत चिन्तन करना।
चितमांसरक्ततया, मत्या मोहोदयेन च ।
तस्यार्थस्योपयोगेन, मैथुनेच्छा प्रजायते ॥५२॥ ५२. चार कारणों से मैथन की इच्छा होती है :
१. मांस और रक्त की वृद्धि। २. मैथुन सम्बन्धी बातें सुनना तथा मैथुन बढ़ाने वाले
पदार्थों को देखना। ३. मोह-कर्म का उदय । ४. मैथुन का सतत चिन्तन करना।
अविमुक्ततया मत्या, लोभवेद्योदयेन च ।
तस्यार्थस्योपयोगेन, संग्रहेच्छा प्रजायते ॥५३॥ ५३. परिग्रह की इच्छा चार कारणों से उत्पन्न होती है :
१. अविमुक्तता—निर्लोभता न होना। २. परिग्रह की बातें सुनना और धन आदि को देखना । ३. लोभ-वेदनीय कर्म का उदय । ४. परिग्रह का सतत चिन्तन करना।
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