SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय १३ : २६१ वीर्य न ऊपर खींचा जाता है और न परिवर्तित होता है, किन्तु उसकी प्राणशक्ति ही खींची जाती है। इस अभ्यास के समय सिर को थोड़ा आगे सरलतापूर्वक झुका लेना अच्छा होगा। भोजन शक्ति देता है। जब शक्ति से व्यक्ति भरता है तब उसका स्व-नियंत्रण नहीं रहता। उत्तेजना पैदा होती है और उसका उपयोग उचित या अनुचित किसी भी तरह हो, यह संभव है। वैज्ञानिक कहते हैं-मौलिक जीवाणु अमीबा है। अमीबा स्त्री-पुरुष दोनों में है। उसमें जनन-प्रक्रिया अद्भुत है। वह सिर्फ भोजन करता है। शक्ति मिलने से टूटता है और दो में विभक्त हो जाता है। वे दोनों भी स्त्री-पुरुष दोनों हैं। फिर वे भोजन करते हैं, शक्ति बढ़ती है। शक्ति बढ़ने से दो टुकड़ों में विभक्त होकर अमीबा जन्म देता है। और आदमी में शक्ति बढ़ने से मिलता है। वासना जागती है, वह जो मिलन में सुख होता है-वह दो के मिलन-जुड़ने से होता है। भोजन सर्वथा छोड़ना शक्य नहीं है। इसलिए यहां कहा है कि साधक वैसा भोजन न करे; जिससे विकृति को उत्तेजना मिले। वह निम्नोक्त तथ्यों पर ध्यान दे १. चाल भोजन में परिवर्तन करे। वह गरिष्ठ, रसयुक्त और उत्तेजनात्मक आहार को छोड़कर निस्सार और रूखा भोजन करे। २. भोज्य-पदार्थों में कमी करे और मात्रा से कम खाए। अधिक चीजें और अधिक भोजन दोनों ही स्वास्थ्य और साधना के शत्रु हैं। ३. कायोत्सर्ग करे-बार-बार शरीर का उत्सर्ग करने वाले व्यक्ति पर बाहरी परिस्थितियों का कोई असर नहीं होता। ४. एक स्थान पर सदा न रहे-एक स्थान पर अधिक रहने से स्थानीय व्यक्तियों के साथ ममत्व हो जाता है। ५. आहार का त्याग करे-काम-विकार यदि उग्र रूप से पीड़ित करने लगे तो साधक भोजन का भी निषेध करे। भोजन के न मिलने पर शरीर स्वयं ही शान्त हो जाता है। शरीर की निश्चलता से मन भी उपशान्त हो जाता है। श्रद्धां कश्चिद् व्रजेत्पूर्व, पश्चात् संशयमृच्छति। पूर्व श्रद्धा न यात्यन्यः, पश्चाच्छ्रद्धां निषेवते ॥१६॥ १६. कोई पहले श्रद्धालु होता है और फिर लक्ष्य के प्रति संदिग्ध बन जाता है। कोई पहले संदेहशील होता है और पीछे श्रद्धालु । पूर्व पश्चात् परः कश्चित्, श्रद्धां स्पृशति नो जनः। पूर्व पश्चात् परः कश्चित्, सम्यक् श्रद्धां निषेवते ॥१७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy