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________________ अध्याय १३ : २८६ काम-वासना(सेक्स)मनुष्य की मौलिकवृत्ति है, ऐसा मनोवैज्ञानिकों का कहना है। 'काम' ऊर्जा है। शक्ति एक है, किंतु उसके प्रयोग भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। मनोवैज्ञानिक इसे विराट् शक्ति कहते हैं और वे कहते हैं कि इससे पार नहीं हुआ जा सकता। इसमें काफी सच्चाई है। बहुत कम व्यक्ति ही इस विराट् ऊर्जा को बचा सकते हैं। इसलिए साधना मार्ग को दुरूह दुर्धर्ष कहा गया। आत्मपुराण में लिखा है "कामेन विजितो ब्रह्मा, कामेन विजितो हरिः। कामेन विजितो विष्णुः, शक्रः कामेन निजितः ॥" काम ने ब्रह्मा को परास्त कर दिया, काम से शिव पराजित हैं, विष्णु को भी काम ने जीत लिया और इन्द्र भी काम से पराजित है। संसार इससे अतृप्त है। इस दृष्टि से वैज्ञानिकों की बात ठीक है। कबीर ने इसी सच्चाई को प्रकट करते हुए कहा है-'विषयन वश त्रिहं लोक भयो, जती सती संन्यासी।' इसके पार पहुंचना बड़े-बड़े योगी और मुनियों के लिए भी सहज नहीं है। कुछ ही व्यक्ति इसके अपवाद होते हैं, जो इस विराट् ऊर्जा को परमात्मा की ऊर्जा के साथ संयुक्त कर देते हैं । शिव और शक्ति का संयोग साधना है। इस स्वाभाविक शक्ति को कैसे ऊपर उठाया जा सके और कैसे परमात्मा की विराट् ऊर्जा में इसका प्रयोग किया जा सके ? साधक यदि इसमें दक्ष होता है तो शनैः शनै वह अपने को इस योग्य बना सकता है। यहाँ कुछ प्रयोग दिए हैं। इससे पूर्व हमें यह जान लेना चाहिए और स्वीकार कर लेना चाहिए कि काम-वासना एक मौलिक वृत्तिहै, सहज है। यह सृष्टि काम का ही विस्तार है। काम की निंदा और घृणा करने से वह नष्ट नहीं होता और न केवल दमन करने से । काम जन्म भी देता है और मारता भी है। कहा है-मरणं बिन्दु पातेन, जीवनं बिंदुधारणात् । ऊर्जा का क्षीण होना मृत्यु है और संरक्षण जीवन है। 'खणमित्त सुक्खा बहुकाल दुक्खा'-सुख स्वल्प है और दुःख अनल्प है । कामवासना के सुख से अतृप्त व्यक्ति पुन: उसी सुख के लिए काम-वासना में उतरता है। वह जो थोड़ा सा सुख है, वह है-दो के मिलन का। मनोवैज्ञानिकों ने यह स्वीकार किया है - इस सुख की झलक ही आदमी को ध्यान समाधि की ओर प्रेरित करती है । ध्यान में व्यक्ति परम के साथ मिलता है। काम से मुक्त होने के लिए ध्यान है। गहन ध्यान समाधि में द्वैत नहीं रहता। इसलिए काम ऊर्जा को ध्यान में रूपान्तरित करना आवश्यक है। काम ऊर्जा नीचे है, मूलाधार में स्थित है और परमात्मा ऊपर सहस्रार में स्थित है। उस ऊर्जा को सहस्रार तक ले जाना साधना है। उस परम मिलन के क्षण को शिव-शक्ति का योग कहा है'हंसः' हं शिव है और सः शक्ति । इसके विविध प्रयोग हैं। चित्त की एकाग्रता और निर्विचारता ऊर्जा को ऊपर उठाती है और सहस्रार में पहुंचाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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