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________________ २६६ : सम्बोधि यह सृष्टि संयोगात्मक है । यह एक सराय है जहां पथिक विभिन्न दिशाओं से आकर मिलते हैं, विश्राम करते हैं और फिर वापस लौट जाते हैं । पथिकों के साथ तादात्म्य कैसा ? उनका संयोग कितने दिनों का हो सकता है ? एक सूफी साधक के घर बुढ़ापे में दो बच्चे पैदा हुए। वह बड़ा प्रसन्न हुआ। बच्चों के प्रति उसका असीम प्यार था । वह उन्हें बिना देखे नहीं रहता था । भोजन साथ में करता, मस्जिद साथ में ले जाता । एक दिन वे दोनों बच्चे खेल रहे थे । अचानक छत ऊपर से गिरी और दोनों बच्चे उसके नीचे दब कर मर गये । पत्नी ने सोचाअब कैसे समझाऊं ? भोजन के लिए साधक आया, बच्चों को देखा नहीं, पूछाकहां है ? पत्नी ने कहा - आप भोजन कर लीजिये, खेलते होंगे । भोजन कर लिया । पत्नी ने पूछा - ' एक आदनी दो हीरे अमानत रखकर गया था, बहुत वर्ष हो गये, वह मांगने के लिए आया है, क्या वापिस कर देने चाहिए ?' उसने कहा'इसमें पूछने की क्या बात है ? अपना है ही नहीं, आया है तो जल्दी वापिस लौटा देने चाहिए ।' पत्नी ने कहा -आओ, मैं बताऊँ ।' वह वहां ले गई । कपड़ा हटाया और कहा- - छत गिरने से दोनों की मृत्यु हो गयी । साधक बड़ा प्रसन्न हुआ । उसने कहा - 'नहीं थे तब भी प्रसन्न थे और अब नहीं हैं तब भी प्रसन्न । यह बीच का खेल था ।' समस्त योग-वियोग में अपने को अर्थों से न जोड़कर जीना ही अन्यत्व भावना का ध्येय है । 1 (६) अशौच भावना - साधक के लिए यह आवश्यक है कि वह शरीर का सम्यक् दर्शन करे। आसक्ति का मूल शरीर है । शरीर के साथ सभी व्यक्ति बंधे हैं । शरीर का ममत्व नहीं टूटे तो साधना में प्रगति नहीं होती । अशौच भावना उस बन्धन को शिथिल करती है, तोड़ती है । बुद्ध ने इसके लिए 'कायगता स्मृति का पूरा प्रयोग बतलाया है । 'कायगता स्मृति' की विशेषता के सम्बन्ध में बुद्ध कहते हैं "भिक्षुओ ! एक धर्म भावना करने और बढ़ाने से महा संवेग के लिए होता है, महा अर्थ (कल्याण) के लिए होता है, महा योग-क्ष ेम (निर्वाण ) के लिए होता है, महा स्मृति - सम्प्रजन्य के लिए होता है, ज्ञान-दर्शन की प्राप्ति के लिए होता है । इसी जीवन में सुख से विहरने के लिए होता है । विद्या- विमुक्ति फल के साक्षाकार के लिए होता है ।' कौन साधक धर्म ? कायगता स्मृति १।" "भिक्षुओं, वे अमृत का परियोग करते हैं जो कि कायगता स्मृति का परियोग करते हैं और भिक्षुओं, वे अमृत का परियोग नहीं करते जो कि कायगता स्मृति का परियोग नहीं करते । कायगता - स्मृति में संलग्न भिक्षु की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा है'वह अरति ( उदासी) और रति ( काम भोगों की इच्छा) को पछाड़ने वाला होता. है । उसे अरति नहीं पछाड़ती है । वह उत्पन्न अरति को हटा हटा कर विहरता I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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