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________________ २१२ : सम्बोधि गुरु नानक साहब ने श्रवण की महिमा जपुजी में गाई है-सुनने से दुःख-पाप का नाश होता है। सुनने से योग, मुक्ति, शरीर-भेद, शाश्वत का ज्ञान होता है। सुनने से अड़सठ तीर्थों का स्नान होता है। श्रद्धा यह तीसरा तत्त्व है। श्रद्धा शब्द से यहां अभिप्रेत है--विश्वास, तैयारी, आकांक्षा। धर्म को सुना और वह प्रीतिकर लगा। किन्तु श्रद्धा आचरण की पूर्व तयारी है। वर्षा से पूर्व किसान जैसे खेत को बीज बोने योग्य कर लेता है वैसे ही 'सद्दहामि, पत्तियामि, रोएमि'-ये जीवन विकास के सूत्र हैं। उनके अभाव में जीवन सरस, सुखद, स्वच्छ और शान्तिमय नहीं हो सकता। साधक कहताहैमैं श्रद्धा करता हूं, प्रतीति करता हूं और रुचिकर मानता हूं।' वह उन्हें देखता भी है जिन्होंने प्रत्यक्ष ऐसा जीवन जीया है और वे उस आनन्द के प्रत्यक्ष प्रमाणः हैं। उसका मन आकांक्षा से भर जाता है कि निश्चित ही मैं भी इस मार्ग का अनुसरण कर इस दशा को प्राप्त हो सकुंगा । जो फूल महावीर, बुद्ध और संतों में खिला, वह मेरे भीतर भी खिल सकता है, नहीं खिलने का कोई कारण नहीं है। कमर कसकर वह तत्पर हो जाता है। पुरुषार्थ 'जानन्ति केचिद् न तु कर्तुमीशाः, कर्तुं क्षमा ये न च ते विदन्ति । जानन्ति तत्त्वं प्रभवन्ति कत्तुं, ते केऽपि लोके विरला भवन्ति ।' सत्य की दिशा में वीर्य को प्रवाहित करना अतिदुष्कर है । गीता में भी कहा है-'मनुष्याणां सहस्रषु कश्चिद् यतते सिद्धये',-हजारों मनुष्यों में से कोई एक सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है। कुछ लोग जानते हैं किंतु आचरण करने में अक्षम होते हैं । कुछ लोग करने में समर्थ हैं किंतु जानते नही हैं। तत्त्व को जानते हों और आचरण के लिए भी प्रयत्न करते हों—ऐसे व्यक्ति संसार में विरल होते हैं। गलत दिशा में चलने के लिए अनेक सहयोगी, मित्र मिल सकते हैं, किंतु सही दिशासहायक मिलना कठिन होता है। घेरे से बाहर निकलना बड़ा जटिल है और फिर पुरुषार्थ के मध्य में अनेक अड़चनें खड़ी हो जाती हैं। कुछ व्यक्ति की अपनी दुर्बलता होती है, बाहर से सहयोग भी वैसा मिल जाता है। अपने बने-बनाये समस्त घेरों और ममत्व को जलाने की क्षमता हो तभी यह संभव है। कबीर ने कहा है'कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाठी हाथ । जो घर जाले आपना, चलो हमारे साथ ॥' जो अपने घर को जला सकता है वह हमारे साथ आए । क्राइष्ट ने कहा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003124
Book TitleSambodhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size19 MB
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