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________________ स्वस्थ समाज रचना 77 और लखनऊ वाले पुल्लिंग मानते हैं। पर वास्तव में वह है क्या, इसका निर्णय अभी होना चाहिए। मिर्जा साहब बोले-बहुत छोटी बात है। जब स्त्रियां बैठी होती हैं तब रक्त स्त्रीलिंग होता है और जब पुरुष बैठे होते हैं तब रक्त पुल्लिंग होता है। हम शब्दों की दुनिया में जीते हैं। शब्दों का विवाद चलता ही रहता है। उसका कभी अन्त ही नहीं आता। जो व्यक्ति अनुभव में चला जाता है वह झगड़ा करता ही नहीं और जो अनुभव में नहीं जाता, वह कभी झगड़ा छोड़ता नहीं। जहां तर्क है वहां प्रतितर्क है। मान्यताओं और सिद्धान्तों की लड़ाइयां तर्क के आधार पर होती हैं। अनुभव के आधार पर कोई लड़ाई नहीं होती। अनुभव पर कोई जाना नहीं चाहता और लड़ाई को छोड़ना नहीं चाहता, यह एक समस्या है। इन सब समस्याओं से निपटने का उपाय है-अनुभव का जागरण। अनुभव के जागते ही वैयक्तिक और सामाजिकदोनों समस्याएं समाहित हो जाती हैं।। आचार्य अमृतचन्द्र ने समयसार कलश (श्लोक-9) में लिखा है उदयति न नयश्रीरस्तमेति प्रमाणं, क्वचिदपि च न विमो याति निक्षेपचक्रम। किमपरमभिदध्मो धाम्नि सर्वंकषेऽस्मिन्, अनुभवमुपयाते भाति न द्वैतमेव ।। जब अनुभव जागता है तब न वाद काम देता है, न प्रमाण काम देता है, न निक्षेप काम देता है। ये सारे वाद, प्रमाण और निक्षेप न जाने कहां छिप जाते हैं। कहीं द्वैत लगता ही नहीं। ध्यान का सबसे बड़ा परिणाम है-अनुभव का जागरण। ध्यान के द्वारा अनुभव नहीं जागता है तो मानना चाहिए कि ध्यान की निष्पत्ति पूरी नहीं हुई है। ध्यान की साधना करने वाले व्यक्ति में कुछ न कुछ अनुभव जागता ही है। अनुभव का जागना एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अनुभव-चेतना से संपन्न होगा, स्वस्थ समाज रचना का सपना सच में रूपायित हो जाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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