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________________ स्वस्थ समाज रचना 65 भीतर में होती है, बाहर आने में महीनों लग जाते हैं। कोई भी घटना, अच्छी या बुरी, भीतर में घटित होती है, बाहर आने में उसे काफी समय लगता है। दूसरों को पता चलने में समय लग जाए, कोई चिन्ता की बात नहीं। पर स्वयं को लगे कि भीतर में बदलना शुरू हो गया हूं। यहां एक चरण पूरा हो जाता है। यदि यह प्रक्रिया बराबर चलती रहेगी तो दुनिया को पता लगने लग जाएगा कि इस व्यक्ति ने साधना की है और यह बदल गया है। कुछ लोग तो साधना को इतना सशक्त बना लेते हैं कि एक बार में ही उनके बदलने का पता लग जाता है और इसी आधार पर यह प्रेरणा जागी है कि आदमी बदलता है और जल्दी उसका पता लग जाता है। शुद्ध साधनों के प्रति आस्था आचार्य भिक्षु ने एक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। दर्शन के क्षेत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण है वह सिद्धान्त । उस सिद्धान्त की व्याख्या, पूरे दो हजार वर्ष के काल में, कुछेक आचार्यों ने ही की है। वह सिद्धान्त है साधन-शुद्धि का। साध्य शुद्ध होना चाहिए, साध्य अभिप्रेत होना चाहिए, इस पर तो बहुत चर्चा की गई, पर जहां साधन का प्रश्न था वहां यह मान लिया गया कि अच्छे साधन से साध्य सिद्ध हो तो अच्छी बात है और अच्छे साधन से न होता हो तो बुरे साधन से भी उसे सिद्ध किया जा सकता है। आचार्य भिक्षु ने कहा-'शुद्ध साध्य के लिए साधन का शुद्ध होना अनिवार्य शर्त है।' जिस व्यक्ति में साधना फलवती होती है, जिसकी चेतना के दोष नष्ट हो जाते हैं और आंतरिक प्रकाश उद्दीप्त होता है, उस व्यक्ति के मन में सबसे पहला संकल्प यह होता है कि मुझे सुख, शांति को पाना है किन्तु पाऊंगा समुचित साधन के द्वारा। गलत साधन के द्वारा न सुख पाना है और न शांति। यह संकल्प प्रबल होता है तो नशे की प्रवृत्तियां, शून्यता लाने वाली औषधियां, और भी गलत प्रयोगों से, गलत साधनों से फलित की जाने वाली शांति और सुख-सब समाप्त हो जाते हैं। शांति को उपलब्ध होना है, सुख को उपलब्ध होना है किन्तु किसी गलत साधन का प्रयोग नहीं करना है, यह निश्चित विश्वास आत्मा में जाग जाएगा। सामाजिक जीवन का आधार सामाजिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण आधार है सत्य । सत्य विराट् और अनन्त है। अनन्त के विषय में कल्पना नहीं की जा सकती। विज्ञान ने एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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