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स्वस्थ समाज रचना
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टकराना । दो होने का मतलब ही है टकराना। दो बर्तन भी टकरा जाते हैं, कभी-कभी अपने दो हाथ भी टकरा जाते हैं । आदमी कपड़ा धोता है, हाथ टकरा जाते हैं, नाखून चमड़ी छील देते हैं, लहूलुहान हो जाता है। एक हाथ का नाखून दूसरे हाथ की चमड़ी को छील देता है, बेचारे नाखून का कोई दोष नहीं । दो का मतलब ही है टकराना । कभी सम्भव नहीं कि दो हों और न टकरायें । सामाजिक जीवन में संघर्ष अनिवार्य है । ध्यान के परिणाम : समाज के संदर्भ में
जीवन विज्ञान का प्रयोग करने वाले व्यक्ति की चेतना बदलती है, उसकी आस्था बदलती है । उसका आधार यह बनता है कि सद्भावना और सहमति के द्वारा समस्याएं सुलझाई जा सकती हैं । संघर्ष की बात मन से टलं जाती है । वह सीधा यह नहीं सोचता कि ऐसा हो गया तो अब संघर्ष करना है, संघर्ष के सिवाय कोई उपाय नहीं । जरा-सी कुछ गड़बड़ हुई, गालियां बकें । थोड़ी-सी कोई स्थिति बनी, मारपीट करें या मार डालने की बात सोचें । यह एक रास्ता है । दूसरा रास्ता है समस्या को सुलझाने का - सद्भावना और सहमति का विकास करना । जीवन विज्ञान का प्रयोग करने वाला व्यक्ति सहमति और सद्भावना की चेतना को जगा लेता है। इससे उसका पारिवारिक जीवन भी सुखी बन जाता है। जिन लोगों ने ध्यान के द्वारा अपनी चेतना को बदला, उनका पारिवारिक जीवन सुखी बन गया। जिनका घर नारकीय आवास था, उनका घर स्वर्ग बन गया।
ध्यान का अभ्यास करने वाला व्यक्ति समाज को या किसी व्यक्ति को अपने गुलाम की भाँति नहीं देखता । उसकी दृष्टि बदल जाती है। अधिकांश कलह इसलिए होते हैं कि अहंकार को चोट पहुंचती है । पारिवारिक झगड़ों, कर्मचारियों के झगड़ों, अपने नौकरों के झगड़ों में मुख्य कारण मिलेगा दूसरों के अहंकार को चोट पहुंचाना । आदमी को इस बात में बहुत रस है । जितना रस रसगुल्ला खाने में नहीं है, उतना रस दूसरों के अहं को चोट पहुंचाने में है । जो दूसरे के अहंकार को चोट पहुंचा देता है, वह यह मान लेता है कि मैं बहुत बड़ा आदमी बन गया । अधिकांश लड़ाइयों के पीछे कारण खोजा जाए तो पता लगेगा कि कोई बड़ी बात की लड़ाई नहीं है, कोई उद्देश्यपूर्ण लड़ाई नहीं है, कोई मुद्दा भी नहीं है । एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के अहं पर चोट की और वह फुफकारने लग गया । साँप भी तब काटता है जब उसके अहं को चोट लगती है, कोई उस पर पैर रख देता है ।
अहंकार को चोट पहुंचाना एक मनोवृत्ति है तो दूसरी मनोवृत्ति है समता
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