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प्रस्तुति
इक्कीसवीं शताब्दी के आगमन की प्रतीक्षा हो रही है। एक दशक से उसमें प्रवेश का स्वर सुनाई दे रहा है। क्या उसमें कुछ नया घटित हो रहा है? बीसवीं शताब्दी में जो हुआ है, उसकी पुनरावृत्ति होगी, पुनरुच्चार होगा या सब कुछ वही होगा जो बीसवीं शताब्दी में हुआ है? ___आते समय स्वागत कपड़ों का होता है और जाते समय स्वागत गुणों का होता है। क्या इस चिरपरिचित नीति को बदल पाएंगे? क्या आते समय स्वागत गुणों का कर पाएंगे? यदि हम इक्कीसवीं शताब्दी को अध्यात्म की शताब्दी बना पाएं, अहिंसा और मानसिक शान्ति की शताब्दी बना पाएं, विश्व मैत्री और विश्व शांति की शताब्दी बना पाएं तो सचमुच हमारी प्रतीक्षा सार्थक होगी। हम आने वाली शताब्दी को अध्यात्म की शताब्दी बनाने का संकल्प लें।
-आचार्य महाप्रज्ञ
15 सितंबर, 1999 अध्यात्म साधना केन्द्र दिल्ली
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