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________________ अहिंसा 111 और पूरे जीव-जगत के लिए खतरा पैदा होना। पता चला है कि अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओजोन की छतरी में छेद हो गया है। उसमें दूसरा छेद उत्तरी ध्रुव प्रदेश के ऊपर भी हुआ है। ये छेद वैज्ञानिक जगत को चिन्ताकुल बनाए हुए हैं। सुपरसोनिक विमान और नाभिकीय विस्फोट ओजोन की परत के लिए खतरनाक हैं। रेफ्रिजरेटर और वातानुकूलन की प्रणाली के लिए जिन गैसों का प्रयोग होता है, वे भी ओजोन की परत के लिए कम खतरनाक नहीं हैं। क्या रेफ्रिजरेटर जीवन के लिए अनिवार्य है? क्या वातानुकूलन के बिना जिया नहीं जा सकता? मनुष्य बुद्धिमान है इसलिए वह अपनी सुविधा के लिए अनेक पदार्थों का निर्माण करता है। वह आदि मानव की भांति प्राकृतिक जीवन नहीं जीता, किन्तु कृत्रिम साधनों का उपयोग करता है। प्रकृति से छेड़छाड़ भी करता है। पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु-इन सबको अपनी सुख-सुविधा के अनुरूप बनाता है। प्रश्न है एक सीमा का। आखिर कहीं तो रुकना जरूरी होता है। बुद्धि रुकना पसंद नहीं करती। इन्द्रियों को भी रुकना पसंद नहीं, फिर हिंसा कैसे रुके? आर्थिक विषमता और हिंसा अहिंसा और अपरिग्रह-दोनों को अलग-अलग देखेंगे तो पूरी बात समझ में नहीं आएगी। अपरिग्रह के बिना अहिंसा को नहीं समझा जा सकता। अहिंसा को समझने के लिए अपरिग्रह को समझना जरूरी है और अपरिग्रह को समझने के लिए अहिंसा को समझना जरूरी है। __ आदमी हिंसा किसलिए करता है? शरीर के लिए, परिवार के लिए, भूमि और धन के लिए, सत्ता के लिए। ये सब क्या हैं? ये सारे परिग्रह हैं। हिंसा का मुख्य कारण है-परिग्रह । कोई अहिंसा करना चाहे और अपरिग्रह करना न चाहे, यह कभी संभव नहीं है। इच्छा, हिंसा और परिग्रह-तीनों में परस्पर संबंध है। तीनों साथ-साथ चलते हैं। एक व्यक्ति धन कमाना चाहता है। क्या हिंसा के बिना धन का अर्जन संभव है? आज अपरिग्रह को एक नया सन्दर्भ मिला है। इस शताब्दी में दुनिया के अनेक विचारकों ने देखा-हिंसा बहुत है, समाज में असंतोष बहुत है। क्रान्तियां और रक्तपात हो रहा है। चिन्तन के बाद उन्हें लगा, इसका कारण परिग्रह है। आर्थिक विषमता के कारण ये स्थितियां बन रही हैं। आज अहिंसा हमारे चिन्तन का गौण विषय हो गया, परिग्रह मुख्य विषय बन गया। आज चिन्तन की सारी धारा आर्थिक समानता और आर्थिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003123
Book TitleKaisi ho Ekkisvi Sadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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