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________________ को पाकर के भी अज्ञानी जीव इसकी यथार्थ आराधना कर नहीं सकता, उल्टा इसका महत्त्व घटाता है, अतः बाल (अज्ञान) जीवों को पंचमंगल पढाने के पहले उस पर उनकी भक्ति उत्पन्न करना चाहिए, फिर उसकी दृढ़ धर्मश्रद्धा जानकर उसे शक्त्यनुसार तप करने का अभ्यास कराना चाहिए, ४५ नमस्कार सहित, २४ पौरुषी, १२ पूर्वार्ध, १० अपार्ध, ६ निर्विकृतिक, ४ एकस्थान, २ आयंबिलों से १ उपवास का कार्य होता है, तपस्या करने वाले की शक्ति की तुलना करके उस प्रकार से उस शक्तिहीन को तप करवा के पंचमंगल पढावे । पंचमंगल और अन्य श्रुताध्ययन में विशेषतागौतम ने पूछा-क्या भगवन् ! पंच मंगल के पठनानुसार ही सामायिक श्रुतादि पढा जाता है ? या इसमें विशिष्टता है ? गौतम के प्रश्न के उत्तर में भगवान ने कहा "दुवालसंगस्स सुयनाणस्स पढम-चरिमजाममहण्णिसमझयण ज्मावणं च, पंचमंगलस्स सोलसद्धजामियं, अण्णं च पंचमगलं कयसामाइएइ वा अकयसामाइएइ वा अहीए, सामाइथमाइयं तु सुयं चत्तारंभपरिग्गहे जावज्जीवंकयसामाइए अहिजिणेइ ण उण सारंभ परिग्गहे अकयसामाइए।" __अर्थात्-हे गोतम द्वादशांग श्रुतज्ञान का दिवस और रात्रि के प्रथम चतुर्थ पहरों में पठन पाठन किया कराया जाता है, तब पंच मंगल का दिवस और रात्रि के १६ अर्ध पहरों में से किसी भी अर्ध प्रहर में पठन पाठन हो सकता है, इसके अतिरिक्त पंचमंगल को सामायिक धारी अथवा सामायिक हीन दोनों प्रकार के मनुष्य पढ़ सकते हैं, तब सामायिक आदि श्रुत आरंभ त्यागी और यावज्जीवकृत सामायिक ही पढ सकते हैं, सारंभ परिग्रहधारी अकृतसामायिक नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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