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जो भिक्षु गांव, नगर, वाहनादि की बातें सुनकर उनमें मन लगाये।
जो भिक्षु गांव-मार्गों, नगर-मार्गों, कर्पट-मार्गों की कहानियां सुनकर उनमें लीन हो जाय ।
जो भिक्षु अश्वकरण, हस्तिकरण, उष्ट्रकरण आदि की बातें सुनकर उनको देखने की इच्छा करे ।
जो भिक्षु घोडे, हाथी, ऊँट, बैल, भैंसे आदि के युद्धों को सुनकर उसमें मन लगाये।
जो भिक्षु हययूथिक, गजयूथिक की बातें सुनकर तत्पर होता है ।
जो भिक्षु अभिषेकस्थान, कथास्थान, मानोन्मानस्थान, नाट्य, गीत, वादित्र के स्थान कानों में सुनकर उस तरफ लक्ष्य करे । _____ जो भिक्षु डिब, विप्लव, युद्ध, महायुद्ध आदि की बातें सुनकर उस तरफ ध्यान देता है। ___ जो भिक्षु अनेक प्रकार के उत्सवों में स्त्रियों, पुरुषों, बच्चों को खेलते, नाचते, कूदते, हंसते देखकर अपना हृदय उस तरफ खींचे।
जो भिक्षु इहलौकिक, पारलौकिक, रूपों में, श्रुत रूपों में, दृष्टाऽवृष्ट रूपों में, ज्ञात अज्ञात रूपों में लयलीन होता है, लुब्ध होता है और ऐसा करने वालों का अनुमोदन करता है वह उद्घातित चातुर्मासिक परिहार स्थान को प्राप्त होता है ।
(१०) अष्टादशोद्देशक:-जो भिक्षु प्रयोजन बिना नाव में बैठे, नाव को खरीदे, नाव का प्रामित्यक करण करे, नाव को अदल बदल करे, नाव को छीनकर उस पर चढे, नाव को स्थल से जल में उतारे, जल से नाव को बाहर निकलवाये, नाव में भरे हुए पानी को बाहर फेंके, लंगर डाली हुई नाव को चालू करावे, दूसरे को नाविक बनाकर स्वयं नाव में बैठे, ऊर्ध्वगामिनी वा अधोगामिनी नाव पर बैठे, योजच वेलागामिनी नाव पर अथवा अर्द्ध योजन वेलागामिनी नाव पर बैठे, नाव को खेवे अथवा खेवावे, नाव को रज्जु से खींचावे ।
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