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को ग्रामान्तर में से, मार्ग में से, सभा में से, उठाकर दीनता से पात्र की याचना करे, जो भिक्षु पात्र की निश्रा से ऋतुबद्ध अथवा वर्षावास वहां ठहरे, इस प्रकार की प्रतिसेवना करने वाले भिक्षु को उद्घातित चातुर्मासिक परिहारस्थान प्राप्त होता है ।
(१५) पंचदशोद्देशकः---जो भिक्षु भिक्षुओं को आगाढ, कठोर, या दोनों प्रकार के वचन बोले और उनकी अत्याशातना करे। जो भिक्षु सचित्त आम खाये, सचित्त आम को काटे, सचित्त आम की पेशी आदि को काटे, छेदे, खाये, जो भिक्षु सचित्त पदार्थ पर रहे हुए आम को खाये या काटे । जो भिक्षु आम, आम की पेशी, आम के टुकडे, आम की छाल, आम की डगली, आम के रेशे, आम की गुठली-इन को काटे या काटने वाले का अनुमोदन करे। ____ जो भिक्षु अन्य तीथिक अथवा गृहस्थ से अपने पैर साफ करावे, पोंछावे, परिमर्दन करावे, घी, तैल, चर्बी, मक्खन से मालिश करावे, लोध, कल्क से उद्वर्तन करावे, शीत, उष्ण, जल से पैरों को धुलावे, घिसाकर रंगावे । इसी तरह शरीर को स्नान परिमर्दन करावे, घी, तेल की मालिश करावे । लोध कल्क से शरीर को उद्वर्तित कराये । शीतोष्ण जल से शरीर को नहलाये इत्यादि । जो भिक्षु अपने शरीरगत व्रण को साफ करावे, परिमर्दन करावे, घी, तैलादि से मालिश करावे, लोध कल्क से उद्वर्तित करावे, शीतोष्ण पानी से धुलावे, फिर साफ कर रंगाये, जो भिक्षु अपने शरीरगत फोडे, फुन्सी, भगन्दर आदि को साफ करावे, तीक्ष्ण शस्त्र से छेदाये, पीप खून को निकलवाये और शीतोष्ण जल से धुलावे, फिर उस पर विलेपन करावे और धी, तैल, वसादि से म्रक्षण करावे, धूपौषधि से धूपित करावे, जो भिक्षु अपने शरीरगत व्रण को साफ करावे, परिमर्दन करावे, घी, तैलादि से मालिश करावे, लोध, कल्क से उद्वर्तित करावे, शीतोष्ण पानी से धुलाये, फिर साफ कर रंगाये । जो भिक्षु अपने शरीरगत फोडे, फुन्सी भगन्दर आदि को साफ करावे, तीक्ष्ण शस्त्र से छेदाये, पीप खून को निकलवाये और शीतोष्ण जल से धुलावे, फिर उस पर विलेपन करावे, धूपौषधि से
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