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सं० सहसा कारित चतुर्मुखबिहारे भद्रप्रासादे श्री आदिनाथ बिंबं सं० कूपाचांदा कारितं प्रतिष्टितं तपागच्छे श्री सोमसुन्दरसूरि सन्ताने श्रीकमलकलश सूरि शिष्य श्री जयकल्याणसूरिभिः भट्टारक चरणसुन्दरसूरि प्रमुख परिवार परिवृतैः ।। श्रीरस्तु श्रीसंघस्य
२०-सम्वत् १८८८ ना वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे पंचमी सोमवासरे श्री अर्बुदतीर्थे अचलदुर्गे श्री जंबूस्वामी पादुका कृता ।। श्री विजयदेवसूरि पादुके ॥ श्री विजयसिंहसूरिपादुके ॥ पं० श्रीसत्य विजयगणि पादुके ॥ पं० कपूरविजयगणी पादुके ।। पं० क्षेमाविजयगणी पादुके ।. पं० जिनविजयगणि पादुके ॥ पं० उत्तम विजयगणि पादुके ।। पं० पद्मविजयगणिपादुके ॥ पं० रूपविजयगणि प्रतिष्ठितं ॥
अचलगढ़ के प्रकीर्णक लेख ।
अचलगढ के नीचे अचलेश्वर के सामने जीर्ण शिव मन्दिर के गर्भगृह में एक राजा की मूर्ति और पाँच रानियों की मूर्तियां हैं। एक स्त्री मूर्ति राजा की मूर्ति वाले पत्थर पर और ४ स्त्री मूर्तियाँ भिन्न पत्थर पर हाथ जोड़े खड़ी हैं। इनके नीचे एक खुदा हुआ लेख है जो नीचे दिया जाता है।
राजश्री मानसिंहस्थ, पत्नीपंचक संयुता । मूर्तिः श्रीमन्महेशस्य, सदाराधनतत्परा ॥१॥ हस्तयुग्मं तु संयोज्य, स्थिता पुण्यवदग्रणी । सर्वपापापनोदार्थ,-चिकाग्रययुता स्थिता ॥२॥ भुक्त्वा राज्यं तु धर्मेण, देवडावंशसंभवः । प्रभवः सर्वपुण्यानां, मानसिंहो भवे (व?).पुरा ॥३॥ श्रीराम भक्तिनिरतः, श्री शिवार्चन तत्परः । शूरोदारगभीरात्मा, मानसिंहो नपाग्रणीः ॥४॥
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