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भारत में लिखा गया हो, यदि पश्चिम भारत का भी संकोच करें तो कहना होगा कि प्रस्तुत भाष्य की रचना सौराष्ट्र में हुई होगी, क्योंकि बाहर से आने वाले साधु को पूछे जाने वाले देश सम्बन्धी प्रश्नों में मालवा और मगध का प्रश्न है, मालवा या मगध में बैठकर कोई यह नहीं पूछता की आप मालवा से आरहे हैं, या मगध से ? अतएव अधिक सम्भव तो यही है कि निशीथ भाष्य की रचना सौराष्ट्र में हुई होगी।" . पण्डित मालवणिया ने अपनी इस तर्कबाजी का मूलाधार निम्नलिखित ३३४७ वी गाथा को माना है"साएता णाऽअोझा, अहवा अोझातोऽहं ण साएता । वस्थव्वमवत्थव्वो, ण मालवो मागधो वाऽहं ॥३३४७॥"
उक्त गाथा किस प्रसंग पर आई है इसका प्रथम विवरण देकर फिर इस गाथा का अर्थ लिखेंगे।
निशीथ सूत्र के ११ वें उद्देशक में निम्नलिखित दो सूत्र आते हैं"जे भिक्खू अप्पाणं विप्परियासेइ विप्परियासतं वासातिज्जति ॥६॥" "जे भिक्खू परं विपरियासेइ विप्परियासंतं वा सतिजति ॥६६॥"
___ "जो भिक्षु अपने खुद के प्रति भाषा-विपर्यास करे अथवा उसका अनुमोदन करे, जो भिक्षु दूसरे के प्रति भाषा-विपर्यास करे अगर करने वाले का अनुमोदन करे, उसको अनुद्घातित चतुर्मासिक की आपत्ति होती है।"
यह भाषा विपर्यास द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव भेद से चार प्रकार का होता है, द्रव्य विषयक विपर्यास जैसे-किसी अनजान मनुष्य ने पूछा यह दाडिम है ? उत्तर में विपर्यास करने वाला कहता है, यह अम्बाडक है, इसी प्रकार अम्बाडक के पूछने पर उसे दाडिम कहे।
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