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________________ ३७३ रत्न, सं० वमा, स० भर्दू भाई संघाधिपति सं० वुलू ( ? ) राज संघाधिपति सं० लषराज चतुर्विध श्रीसंघयुतेन श्री अबुर्दाचल यात्रा कृता कारापिता सतु (कु) टंबयुतेन सं० रूपचन्द, देवचन्द, टोकर, भगिनिबाई सषाई, पुत्र वर्धमाना माना युतेन यात्रा कृता ।। १६५–६० श्रीसंघ चारित्ररत्नगणि गुरवे । सं० १६०३ वर्षे श्रीपाल्हणपुरीय यक्षोपाध्याय श्री विमलचारित्रगणि, शिष्य माणिक्य चारित्र, ज्ञानचारित्र, हेमचारित्र, शचधीर, धर्मधीर, शिष्याणी प्र० विद्यासुमति, रत्नसुमति, प्रमुग्व परिवार युतानामुपदेशेन श्रीव द्धशाखीय सा० श्री जीवराज भा० पल्हाई तयोः पुत्र रत्न सं० श्रीहीराजीकेन पुत्र देवजी प्रमुखकुटंब युतेन सकल संघजन साधुसाध्वीनां यात्रा कारिता स्वकुटुंबशेयसे, पं० अमरहसगणि, पं० कनकसुदर, विमलचरण, पं० विजयविमल, लक्ष्मीदान, विवेकनी (धी) र ( ? ) लक्ष्मीचूला यात्रा सफल । १६६-निजगुरु पंडित श्रीसंघचारित्रगणिगुरुभ्यो नमः श्री पाल्हणपुरापक्षीय महोपा० विमलचारित्रपूज्यगणीनामुपदेशेन शतकोत्तरवाहिनी संघजनानां च श्रीगुर्जरज्ञातीय म० नरसिंघ भा० लीबादे,............"भागिनेय बलाल.............."याक्रगीभा...कु प्रजापणी लालबाई, श्रीमालीज्ञाति शृगारसरूप वन्द सं० सहसकिरण श्रीमलमलजी वृद्ध प्राग्वाटज्ञातीय सा० जीवराज सुत सं० लीराकेस रत्नः सत्पुरुषः सकलश्रीसंघलोकसाधुसाध्वोनां यात्रा कारिता । निज पितृव्यकेन स्वपितृमातृ कुटंब श्रेयसे संघपतिपदं ष श्रीथापना दत्ता । सं० १६०३ पोष शुदि ५ गुरौ। सं५ कुरजी पंडित श्री ४ स० चारित्रगणि शिषमहोपाध्याय श्री श्री श्री श्री विमलचारित्रगणी नोमुपदेशेन जीऊमलजी धनजी संघवी।। १६७-स.१६१६ वर्षे माह सुदि ११ कृष्ण ऋ० गच्छे भ० श्री धर्मचन्दसूरि महोपाध्याय श्रीमाणिकराजा वा० लिक्ष्मी लाभः ग० गुणकीति, मुहरिदास ग०, जयसिंघ, कान्हा मुनिसिद्धपाल, चि० माधा चिरंमंत्री श्रीमाल वराहु रूना, साह भइरब, गोइंद. जयसिंघ, करमसी, जाना गुरणा साधै सफल ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003122
Book TitlePrabandh Parijat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size18 MB
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