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निबन्ध-निचय
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इसका पता तक नहीं लगा कि नव कलशों का सात देवियों से अधिवासन कैसे हो सकेगा, इस करतूत से तो यही मालूम होता है कि इस कृति में उलट-फेर करने वाला कोई अच्छा विद्वान् नहीं था। वास्तव में ॐ कार के बाद के दो अक्षर बीजाक्षर नहीं, किन्तु "द्रहनिवासिनी दो देवियों के नाम हैं" और इनके आगे के चार नाम भी द्रह-देवियों के हैं। इनका सच्चा क्रम "ॐ, श्री, ह्री, धृति, कीति, बुद्धि, लक्ष्मी' इस प्रकार से है । ये छः द्रनिवासिनी देवियाँ हैं ये छ: देवियाँ दिगंबर तथा श्वेताम्बर दोनों परंपरा वालों को मान्य हैं, शान्ति देवी का नाम श्वेताम्बरीय प्रतिष्ठा-कल्पों में आता है, परन्तु "तुष्टि" "पुष्टि' को श्वेताम्बर संप्रदाय के किसी भी ग्रन्थ में देवियों के स्वरूप में नहीं माना। वास्तव में 'शान्ति, तुष्टि, पुष्टि" ये तीनों पौराणिक-मातृका-देवियाँ हैं, जिन्हें "सिद्धचक्र महापूजा" के मूल लेखक ने द्रह-देवियों के साथ इनको जोड़कर नव-देवियाँ बना ली हैं। इससे यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि इस पूजा-विधान का मूल लेखक कोई दिगम्बर विद्वान् था ।
७. चतुर्विशति जिन यक्षों में बारहवें यक्ष का नाम "असुर-कुमार' लिखा है, जो वास्तव में अश्वेताम्बरीय है, श्वेताम्बर परम्परा बारहवें तीर्थकर के यक्ष का नाम “कुमार" मानती है, न कि 'असुरकुमार, ।
८. श्वेताम्बर परम्परा चौबीसवें यक्ष का नाम 'मातङ्ग, मानती है, न कि 'ब्रह्मशान्ति । 'ब्रह्मशान्ति. देव महावीर का भक्त अवश्य था, परन्तु उसे उनका शासन.यक्ष मान लेना श्वेताम्बर संप्रदाय की मान्यता के विरुद्ध है।
६. कुमुद अंजन वामन पुष्पदन्त इन चार दिग्गजों को 'सिद्धचक्र, के द्वारपाल बनाने में केवल कल्पना बिहार किया है, क्यों कि जैन प्रामणिक ग्रन्थों में “सिद्धचक्र" के तो क्या तीर्थङ्करों के समवसरण के द्वारपालों में भी इनके नाम परिगणित नहीं है. “सिरि सिरिवाल कहा" में ये चार नाम दृष्टि गोचर होते हैं. परन्तु यह अश्वेताम्बरीय प्रक्षेप हैं।
१०. नवम वलय में चार वीरों की पूजा करना बताया है वीरों के नाम मणिभद्र पूर्णभद्र कपिल पिंगल लिखे हैं इनमें से प्रथम के दो नाम श्वेताम्बर
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