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निबन्ध-निचय
मुकुलैर्नाचियेद्द व मपक्वं न निवेदयेत् । मुद्रानीतैः क्रयक्रीतैः कर्म कुर्वन्पतत्यधः ॥
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पृ० १४४ - 'दोपम्' कालिकापुराणे :
न मिश्रीकृत्य दद्यात्तु, दीपं स्नेहे वृतादिकम् । धृतेन दीपकं नित्यं तिलतैलेन वा पुनः ।। ज्वालयेन्मुनिशार्दूल ! सन्निधौ जगदीशितुः । कार्पासिवर्तिका ग्राह्या, न दीर्घा न च सूक्ष्मका ॥
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- सूत्रावलि कर्मकाण्ड का एक संग्रह ग्रन्थ है । इसका निर्माण पं० विट्ठलात्मज नारायण ने सन् १९५३ में किया है तथा श० सं० १८७५ | ग्राज तक इसकी ग्यारह प्रावृत्तियां निकल चुकी हैं ।
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