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निबन्ध-निचय
: ३२१
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धर्म को दयामूलक मानते हैं और सुख का मूल धर्म को " । फिर भी इनकी दृष्टि में अर्थवर्ग सबसे आगे है, ऐसा इनके अनेक उल्लेखों से जान पड़ता है । इतना ही नहीं, चारणक्य सूत्रों में अनेक ऐसे सूत्र हैं उतारकर मनुष्य सुखी ही नहीं एक नीतिज्ञ पुरुष बन सूत्रों के पढ़ने से पाठकों को जो आनन्द प्राप्त होता है, प्रकट नहीं किया जा सकता ।
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जिन्हें जीवन में सकता है । इन वह शब्दों द्वारा
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