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अशुद्ध
(२१) जे कोई
(२२)
(१८) भगवान् चतुर्थार(१९) प्रदीपानलो
(२०) कुटादयः, तत्र
मिबन्ध-नियम
सकलात में :
वेसे
(२३) मातरु २
(२४) पील्यां
(२५) सविहु- सर्वपरण (टि)
प्रतिचारों में :
(२६) श्रपवेसे
( २७ ) प्रवेश कर्या विना (टि० ) ( २८ ) मांज्यो
(२९) अमेरो बीजो
(३३) वंचि
(३४) जसुर
(३०) भक्षित- उपेक्षित - भक्षरण करतां उपेक्षा कीधी
(३१) हवा दशमी
(३२) अथवा दशमी
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प्रतिचारों में :
प्रजित शांति स्तव में :
बृहच्छान्ति में :
(३५) लोकोद्योत ( ३६ ) भूमण्डले आयतन
शुद्ध
भगवांश्चतुर्थार प्रदीपानिलो
कूटादय- स्तत्र
ने जे कोई अणवे
मातरियुं २
पाली
सविहु- सर्वनुं (टि ० ) प्रणवे
प्रवेदन कर्या विना (टि० )
भांज्यो
अनेरो अन्यतर
भक्षित- उपेक्षित भक्षण
कर्य उपेक्षा कधी
: १३३
अहिवा दशमी
अविधवा दशमी
वंचित्रं जं सुर
लोकोद्योत भूमण्डलायतने
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