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पाँचवा मुख है, उस मुख से तू सर्वभूतों को खाता है, उस मुख से मुझे अन्नाद कर ।
“पुत्रोऽन्न रसान् मे त्वयि दधानीति पिताऽन्न रसास्ते मयिदध इति पुत्रः”
"कौषीतकि ब्राह्मणोप निषद्' पृ० १७० अथात् --पुत्र कहता है, अन्न रसों को तुम्हारे में स्थापनकरू, पिता कहता है, हे पुत्र ! तू मेरे में अन्न रसों को स्थापित कर । ___“स एवैष वालाकिर्य एवैष चन्द्रमसि पुरुषतमेवाहं ब्रह्म उपास इति, तं होवाचाजातशत्रुर्मामैतस्मिन् समवदियिष्टा सोमो राजा अन्न रसस्यात्मेति वा अहमेतमुपास इति स यो खै तमेवमुपास्तेऽन्नस्यात्मा भवति ।
“कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद्” पृ० १७३ । अर्थात्--वालाकि कहते हैं-चन्द्रमा में जो पुरुष है, उसकी मैं ब्रह्म रूप से उपासना करता हूँ। उसको अजातशत्रु ने कहा, इस विषय में ऐसा मत बोल, सोम राजा है, वह अन्न का आत्मा है, इसलिये मैं इसकी उपासना करता हूँ। जो इस की उपासना करता है. वह अन्न का आत्मा होता है। - "ॐ नारायणाद्वाऽन्नमागतं पक्कं ब्रह्म लोके महासंवर्तके पुनः पक्कमादित्ये पुनः पक्वं क्रव्यादि पुनः पक्वं जालकिलक्लिन्न पयुषितं पूतमन्न मयाचितमसंवलुप्तमश्नीयान्न कञ्चन याचेत" ।
__ "सुबालोपनिषद्' पृ० २११
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