________________
(६)-"निस्त्रिंश" शब्द प्रथम उस तलवार के अर्थ में प्रयुक्त होता था, जिसकी दाहिनी वाँयी और अगली तीनों धारायें तीक्ष्ण होती थीं । परन्तु निस्त्रिंश का आज वह अर्थ नहीं रहा, श्राज तो यह शब्द सामान्य तलवार और निर्दय प्राणी के अर्थ में व्यवहृत होता है।
(७)-"मधु" शब्द वेद काल में केवल जल के अर्थ में प्रयुक्त होता था । कालान्तर में वह पुष्पस्थित मकरन्द रस का वाचक भी होगया और धीरे धीरे मक्षिका संचित मकरन्द और उस के संचय का अनुरूप मास चैत्र और ऋतुवसन्त ये सभी मधु शब्द-वाच्य हो गये पिछले लेखकों ने तो मधु शब्द का मद्य के अर्थ में भी प्रयोग कर डाला। ___ इन थोड़े से उद्धरणों से वाचक-गण को यह ज्ञात हो जायगा कि कोई भी शब्द अपना वाच्यार्थ सदा के लिए टिका नहीं सकता। कई अनेकार्थक शब्द अनेक अर्थों को छोड़ कर एक आध अर्थ को टिकाये रखते हैं, तब अनेक एकार्थक शब्द अनेकार्थक बन आते हैं । इस दशा में यव आदि शब्दों को पकड़ कर अन्य धान्य वाचक शब्दों और उनके वाच्यार्थ धान्यों का प्रभाव मान लेना अदरदर्शिता है।
टिप्पणी १.-"निस्त्रिशं शब्दः त्रिभिः प्रदेमैः द्वाभ्याम् धाराभ्याम् अग्रेण च निशितः श्यतीतिच निस्त्रिंशः खङ्गः ख्य ग्रहणात् तत्र ह्यस्थ शब्दस्य समञ्चसा वृत्तिः। स एष छेदनसमानरूपं क्रौर्य-सामान्य माश्रित्य सर्वत्रैवाभि प्रवृत्तः यो हिलोके करो भवति, स निस्त्रिंशः इत्युच्यते ।
___ "यास्क निरूक्त भाष्ये"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org